उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘चल सकूँ, तब तो। मुझे तो सख्त चोट आई है।’’
धनिक परेशानी अनुभव करने लगा था। इस समय कोठी का अर्दली भागता हुआ आया। उस अंग्रेज़ औरत ने उससे कहा, ‘‘इस औरत को स्ट्रेचर पर डालकर भीतर ले जाओ और इसके माथे पर मरहम-पट्टी कर दो।’’
सोना ने उस अंग्रेज़ औरत की बात न समझते हुए उठकर चलने का यत्न किया। परन्तु वह उठ नहीं सकी। वह पुनः चक्कर खाकर भूमि पर गिर पड़ी। उस अंग्रेज़ औरत ने उसको अपने हाथ से बैठे रहने का संकेत किया।
अर्दली दो सिपाहियों के साथ स्ट्रेचर लेकर आ पहुँचा। अब सोना को स्ट्रेचर पर लिटा दिया गया और वे उसको कोठी के भीतर ले गए। चौधरी मुख देखता रह गया। उस बन्दूकची ने कहा कि वह भीतर जा सकता है। धनिक ने अपनी गठरियाँ उठाईं और उनके पीछे-पीछे चल पड़ा।
अर्दली टिंचर आयोडीन लगा अभी उसकी पट्टी कर ही रहा था कि इतने में एक डॉक्टर और एक नर्स वहाँ पर आ गए। इस समय वह अंग्रेज़ औरत भी, जिसके घोड़े से उसकी टक्कर हुई थी, आ गई और डॉक्टर से अंग्रेज़ी में बात करने लगी।
डॉक्टर ने धनिक को बताया, ‘‘इस औरत के कमर में चोट लगी है इस कारण इसको हस्पताल ले जाएँगे। दो-तीन दिन वहाँ रखना पड़ेगा।’’
‘‘कहाँ?’’ धनिक ने पूछ लिया।
‘‘हस्पताल में।’’
‘‘क्या होता है वहाँ?’’
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