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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘यहाँ क्यों घूम रहे हो?’’

‘‘रहने की जगह और काम ढूँढ़ने के लिए।’’

सिपाही ने हँसते हुए कहा, ‘‘भाग जाओ यहाँ से नहीं तो गोली का निशाना बना दूँगा।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यह ‘कमांडिंग ऑफिसर’ का बंगला है।’’

धनिक अभी इस बात को समझने का यत्न कर ही रहा था कि एक अंग्रेज़ औरत घोड़े पर सवार, घोड़े को सरपट दौड़ाती हुई आई और इनके समीप से गुज़रने लगी। सिपाही इनको एक ओर को हटा रहा था और ये घबराहट में सड़क के बीच होते जाते थे। औरत ने सोना को घोड़े के नीचे आने से बचाने के लिए घोड़े की लगाम रोकने तथा एक ओर से निकल जाने का यत्न किया। इस पर भी सोना को घोड़े का धक्का लग ही गया और वह चक्कर खाकर सड़क पर गिर पड़ी। धनिक ने कन्धे की गठरी भूमि पर रखी और उसको उठाने लगा। सोना के कन्धेवाली गठरी तो लुढ़ककर दूर चली गई थी।

उस औरत ने घोड़ा रोक लिया। किन्तु तब तक वह बंगले के अन्दर बहुत दूर तक पहुँच चुकी थी। उसने घोड़ा घुमाकर देखा और औरत को पुरुष के आश्रम उठकर लँगड़ाते हुए सड़क की एक ओर हटते देख, घोड़ा पुनः घटनास्थल पर ले आई। सोना के माथे से रक्त निकलता देख वह घोड़े से नीचे उतर गई।

उसने देखा कि उस आदमी के कन्धे पर भी पट्टी बँधी है। यह घुड़सवार औरत कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी सोफी थी। उसने देखा कि घायल एक अधेड़ आयु की सुन्दर औरत है। उसने औरत को घायल देख सिपाही को अंग्रेज़ी में ऑर्डर दिया, ‘‘अर्दली को बुलाओ।’’

इस समय सोना सड़क की एक ओर बैठ, अपने आँचल से माथे के रक्त को बन्द करने का यत्न कर रही थी। धनिक उसकी गठरी को उठा लाया था और उसको अपनी गठरी के समीप रख, सोना से बोला, ‘‘यहाँ से चलना चाहिए।’’

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