लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इसके विपरीत बिन्दू घाघरा पहने हुई थी, जो पर्याप्त मैला था। चोली थी, वह भी मैली थी और घाघरे के ऊपर जाँघों तक लटक रही थी। यद्यपि छः मील की यात्रा पर कपड़े सूख गए थे, फिर भी वे अस्त-व्यस्त हो रहे थे। बड़ौज ने तो चमड़े का जूता पहना था। परन्तु बिन्दू सिर और पाँव से नंगी थी। बिन्दू के खुले बाल सिर और कंधों पर फैले हुए थे जो सर्वथा खुश्क और बिखरे हुए थे।

बस्ती के लोग खड़े हो इनको देखने लगे थे। बड़ौज इस बात का अनुभव कर रहा था, परन्तु उसके पास उनकी दृष्टि से बच सकने का उपाय नहीं था। बिन्दू तो वहाँ की स्त्रियों का पहरावा देख-देखकर ही चकित हो रही थी।

आखिर वे गिरजाघर के द्वार पर जा पहुँचे। काले रंग का चोगा पहने एक व्यक्ति इनको गिरजाघर के अहाते में प्रवेश करते देख उनके समीप आकर पूछने लगा–

‘‘कहाँ से आए हो?’’

‘‘नदी पार नाग लोगों की एक बस्ती से।’’

‘‘क्यों आए हो?’’

‘‘विवाह के लिए।’’

‘‘वहाँ क्यों नहीं कराया?’’

‘‘नहीं हो सका। पुरोहित स्वयं इससे विवाह करना चाहता था।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book