लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


वह गिरजाघर का पादरी था। इनकी बात सुन कुछ क्षण तक लड़की को देखता हुआ खड़ा रहा। फिर पूछने लगा, ‘‘लड़की! क्या आयु है तुन्हारी?’’

‘‘मैं नहीं जानती। मुझे किसी ने बताया नहीं।’’

‘लड़के! तुम्हारी आयु कितनी है?’’

‘‘हमारे यहाँ आयु की गिनती नहीं रखी जाती। केवल विवाह के योग्य आयु को देखा जाता है। सो हम हैं।’’

पादरी पुनः गम्भीर विचार में डूब गया। फिर बोला, ‘‘आओ, भीतर आ जाओ।’’

दोनों उसके पीछे-पीछे गिरजाघर में चले गए। भीतर की सफाई और बैठने के लिए बेंचें और कुर्सियों देखकर वे चकित रह गए। पादरी उनको कुर्सियों के बीच में से ले जाकर एक ऊँचे मंच पर ले गया। वहाँ एक स्त्री की अति सुन्दर तस्वीर बनी थी। वह श्वेत उत्तरीय से ढंपी थी, केवल उसका मुख ही खुला था।

पादरी ने उसके सम्मुख रखी पाँच मोमबत्तियाँ जला दीं। मोमबत्ती के प्रकाश में मरियम की सौम्य मुर्ति के सामने पादरी ने घुटने टेक दिए। उसने इन दोनों को भी वैसा ही करने के लिए कहा। दोनों ने घुटने टेक दिए। पादरी ने कहा, ‘‘सौगन्धपूर्वक कहो कि हम दोनों वयस्क हैं और विवाह की इच्छा करते हैं।’’

दोनों ने यही कहा तो पादरी ने उठकर दोनों पर वहाँ रखा जल छिड़का और भगवान का आर्शीर्वाद सुना दिया, ‘‘तुम्हारा विवाह होता है। तुम जीवन-पर्यन्त इकट्ठे प्रेम से रहने का वचन देते हो।

सो प्रभु स्वीकार करते हैं।...’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book