लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


चीतू कहने लगा था कि उसका पिता सायंकाल तक आएगा, किन्तु उससे पूर्व ही उसकी पत्नी सूजा ने कहा, ‘‘हमारे पास रुपया नहीं है।’’

‘‘है तो।’’ धनिक ने आग्रहपूर्वक कहा।

‘‘परन्तु इस दण्ड के भुगतान के लिए नहीं है।’’

‘‘तो किस काम के लिए है?’’

‘‘खेत पर काम करने के लिए।’’

‘‘परन्तु मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?’’

‘‘तुमने हमारी ननद को घर से निकलवा दिया है। जब लुग्गी वयस्क हुई तो उसने कहा था कि वह आमुख से विवाह करेगी। तुम और साधु इसमें बाधा बन जाए और फिर बेचारी को घर से भाग जाना पड़ा था।’’

‘‘सुना है, वह वहाँ बहुत सुखी है। इसलिए इससे तो तुम्हें हमारा धन्यवाद करना चाहिए। मैंने उसका भला ही किया है।’’

‘‘तो अपना भी भला क्यों नहीं कर लेते? दण्ड का रुपया क्यों दे रहे हो?’’

धनिक बितर-बितरकर मुख देखता रह गया। सूजा एक दूसरे कबीले की लड़की थी। उस समय दोनों कबीलों में मित्रता थी। लड़कियों का आदान-प्रदान हो रहा था। मित्रता तो अब भी थी। फिर भी वह कबीला बहुत दूर चला गया था। वह अब बर्मा की सीमा के पास जाकर रहने लगा था। इससे कितने ही वर्षों से परस्पर विवाह नहीं हो रहे थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book