उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
धनिक लीमा के घर पहुँचा, किन्तु वह घर पर नहीं था। उसका छोटा लड़का चीतू अपनी बीबी सूजा के साथ बैठा रस्सी बट रहा था। धनिक ने पूछा, ‘‘कहाँ है तुम्हारा बाबा?’’
‘‘खेत पर गया है।’’
‘‘तो तुमने खेत ले लिया है?’’
‘‘लिया नहीं, बनाया है। नदी के पार कुछ भूमि थी, उस पर हमने अधिकार कर लिया है और वहाँ धान बोने का विचार कर रहे हैं। नीतू लुमडिंग के पास खेत-बाड़ी होती देख आया है और इस वर्ष हम वहाँ धान बो देंगे।’’
‘‘लुग्गी यहाँ आती है?’’
‘‘नहीं, वह तुमसे डरती है। वह कहती है कि तुम उसको पकड़कर मरवा डालोगे।’’
‘‘परन्तु क्या वह आना चाहती है?’’
‘‘हाँ, उसका चित्त माँ से मिलने के लिए करता है।’’
‘‘तो माँ को वहीं क्यों नहीं ले जाते?’’
‘‘सोचते तो हैं, लेकिन बाबा अभी मान नहीं रहे।’’
धनिक इस वार्तालाप से चकित रह गया। उसने कहा, ‘‘मुझे कुछ रुपये ऋण के रूप में चाहिए?’’
‘‘दण्ड का भुगतान करने के लिए?’’ चीतू ने पंचायत का निर्णय सुन लिया था।
‘‘हाँ!’’
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