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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


बिन्दू उठी तो बड़ौज भीतर जाकर अपना रिवाल्वर ले, उसे अपनी पतलून की जेब में डाल, बाहर आ गया। बिन्दू ने सैली को गोद में उठा लिया और उसको लेकर अपनी कोठी के पिछवाड़े एक पहाड़ी टीले पर चली गई। वहाँ जाकर बोली, ‘‘जल्दी करो, अभी तो एकान्त है।’’

‘‘परन्तु तुम इसको किसलिए लाई हो?’’ उसने लड़की की ओर संकेत कर पूछा।

‘‘ताकि तुम उसे मारकर मेरी निशानी अपने साथ ले जा सको।’’

इस पर बड़ोज ने अपना रिवाल्वर निकाल लिया। सैली ने देखा और न जाने उसने क्या समझा कि वह अपनी माँ के गले से चिपककर चीखें मारने लगी। बिन्दू ने उसको चुप कराने के लिए लड़की का मुख चूमा और उसको एक ओर हटाने का यत्न किया। किन्तु लड़की पूरे बल से अपनी माँ के गले से चिपक गई। साथ ही वह ज़ोर-ज़ोर से रो भी रही थी। जब बिन्दू उसको एक ओर नहीं कर सकी तो उसने बड़ौज से कहा, ‘‘एक ही गोली से दोनों को चुप करा दो न।’’

बड़ौज परेशानी में यह नाटय देख रहा था। वह लड़की को साथ ले जाने का विचार कर रहा था। परन्तु उसको रोते-चिल्लाते और माँ से चिपटते देख वह हताश हो गया। उसने कह दिया, ‘‘यह मुझसे नहीं हो सकता।’’

उसने रिवाल्वर फेंका और वैसे ही वहीं से कुल्लू की ओर चल पड़ा। बिन्दू एकटक उसे देखती रही। जब वह बहुत दूर बर्फ के टीले के पार चला गया तो बिन्दू ने रिवाल्वर उठाया और डाकबंगले की ओर चल पड़ी।

स्टीवनसन डाकबंगले में पहुँचा हुआ था। बिन्दू को वहाँ न देख वह खानसामा और कुली से पूछ रहा था, ‘‘मेमसाहब यहाँ आई थीं?’’

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