लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...

4

अगले दिन स्टीवनसन को डाकबंगले में जाकर नए आए व्यक्ति से मिलने का कष्ट नहीं करना पड़ा। बड़ौज तो प्रकाश होते ही बिन्दू ग्रीव के बाहर चक्कर काटने लगा था।

सबसे पहले बिन्दू कोठी के बाहर निकल आकाश की ओर देख उस दिन ऋतु का अनुमान लगाने लगी थी। आकाश साफ था। इससे धूप होने का अनुमान लगा वह प्रसन्न थी। इस समय एक हिन्दुस्तानी यूरोपियन पोशाक पहने हाथ में नोकदार छड़ी से मार्ग टटोलते हुए कोठी के बाहर से गुज़रता दिखाई दिया। वह अभी विचार ही कर रही थी कि किस प्रकार इस अपरिचित व्यक्ति से पता करे कि वह कौन है और किसलिए वहाँ आया है कि वह व्यक्ति कोठी के भीतर आता दिखाई दिया।

स्टीवनसन अभी सो रहा था। यदि जागता होता तो वह उसको बुला लाती और इस व्यक्ति से बातचीत करती। इस वीरान स्थान पर और इस ऋतु में किसी सभ्य व्यक्ति के दर्शन एक अति इच्छित बात थी। इस कारण बिन्दू वहाँ बरामदे में खड़ी-खड़ी उस आदमी के पहुँचने की प्रतीक्षा करती रही।

बिन्दू के मस्तिक में जो बड़ौज का चित्र था वह एक मकान बनानेवाले मिस्त्री का था। जो सप्ताह में एक बार हजामत बनाता था, उनकी छोटी-छोटी मूँछे थीं और सिर के बाल विचित्र थे। वह लुंगी और कुर्ता पहनता था और प्रायः पाँव से नंगा होता था। बिन्दू उस बड़ौज को इस सूट, टाई, कालर हैट, बूट और बढ़िया ओवरकोट पहने व्यक्ति को पहचान न सकी। यह व्यक्ति तो ‘क्लीनशेव्ड’ था। अभी-अभी हजामत बनाकर आया प्रतीत होता था। सिर के बाल पढ़े-लिखे लोगों की भाँति कटे थे। पाँव में भी बहुत बढ़िया चमड़े का जूता था। वह बड़ौज को पहचान नहीं सकी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book