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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


बड़ौज ने तो उसको कोठी के बाहर से ही देखा और पहचान लिया था। वह अभी अपने को प्रकट करना नहीं चाहता था, परन्तु जब उसको ज्ञात हुआ कि वह अपनी खोज का ध्येय पा गया है तो वह बिना इच्छा तथा प्रयास के ही उसकी ओर खिंचा चला आया था।

जब बड़ौज बिन्दू के सामने आकर खड़ा हुआ तो उसके मुख से निकल गया, ‘‘क्या आप श्रीमती स्टीवनसन हैं?’’ यह उसने अंग्रेज़ी में पूछा था।

‘‘गुडमॉर्निंग।’’ बिन्दू ने कहा और फिर बोली, ‘‘हाँ, मैं मैडम स्टीवनसन हूँ। क्या काम है, कहिए?’’

बड़ौज समझ गया कि उसने अभी उसको पहचाना नहीं। इससे उसने बात बनाने के लिए कह दिया, ‘‘मैं कल यहाँ पहुँचा था। मैं यहाँ बर्फ का दृश्य देखने के लिए आया हूँ। डाकबंगले में ठहर गया था। इस जनशून्य स्थान में इन्सान की सूरत देखकर मिलने की स्वाभाविक इच्छा से आपको देखकर भीतर चला आया हूँ। उन कुटिया वालों से कल यहाँ रहने वाले सज्जन का नाम पता चला था। क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ?’’

‘‘वे अभी सो रहे हैं। आप बैठिए, अभी चाय बन जाएगी, तब तक वे भी जाग पड़ेंगे।’’

यही तो बड़ौज चाहता था। जब तक बिन्दू उसको कोठी के ड्राइंगरूम में लेकर गई बड़ौज ने निश्चय कर लिया कि वह अभी अज्ञात ही रहेगा। वह अपना परिचय तब तक नहीं देगा, जब तक वह उसको पहचान नहीं जाती और इस अज्ञात अवस्था में ही वह बिन्दू के मन की अवस्था जानने का यत्न करेगा।

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