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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


भोजन की व्यवस्था एक समस्या थी। उन कुटिया वालों से, जो डाकबंगले से कुछ अन्तर पर थी, सम्पर्क स्थापित किया गया। बर्फ के कारण वहाँ तक जाना कठिन तो था, परन्तु खाने के बिना रहना ही कठिन था, इसमें कुली भारी सहायक सिद्ध हुआ। एक रुपये की वस्तु के तीन-तीन रुपये देकर चावल, दाल, अण्डे, मुर्गी उपलब्ध किए गए; और कुली ही बड़ौज के लिए पाचक का काम करने लगा।

सूर्यास्त से पूर्व बड़ौज देख आया कि बस्ती में एक ही बंगला और है और उसका नाम बिन्दू ग्रोव है। उस बंगले में कोई रहने वाला था तो किन्तु उस समय बर्फ पड़ी होने के कारण सब मकान के भीतर थे। खिड़की के भीतर प्रकाश से ही रहने वालों के अस्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता था।

शेष जाँच के कार्य को अगले दिन के लिए छोड़ वह डाकबंगले में लौट आया। उस मकान में सैमुएल स्टीवनसन और बिन्दू ही रहते थे। इस समय बिन्दू के तीन बच्चे थे। एक लड़का और दो लड़कियाँ। लड़का सबसे बड़ा था और उसकी आयु इस समय छः वर्ष की हो गई थी। एक लड़की चार वर्ष की थी और एक तो अभी एक ही वर्ष की थी। रात के समय डाकबंगले के एक कमरे में प्रकाश देखा तो बिन्दू ने अपने पति से कहा, ‘‘कोई डाकबंगले में आकर ठहरा है।’’

‘‘हाँ, सायंकाल मैंने एक कुली को उस बंगले से उन झोंपड़ों की ओर जाते देखा था।’’

‘‘कोई जंगल का अफसर होगा।’’

‘‘अफसर इस ऋतु में मरने के लिए आएगा क्या! कोई बर्फ का दृश्य देखने का शौकीन प्रतीत होता है।’’

‘‘परन्तु बर्फ देखने के लिए इतनी दूर आने की क्या आवश्यकता है?’’

‘‘यहाँ ‘ग्लेशियर’ का भव्य दृश्य भी तो है?’’

‘‘प्रातःकाल उससे मिलने का यत्न करिए। अगर कोई भला व्यक्ति हुआ तो कम्पनी का लाभ उठाएँगे।’’

‘‘हाँ देखूँगा, उसके बाद ही उसे यहाँ लाने का निर्णय किया जाएगा।’’

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