उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
दोनों बरामदे से निकल गिरजाघर के सामने वाले घास के मैदान में चले गए। वहाँ टहलते हुए बड़ौज ने पूछा, ‘‘कहिए मिस सील! क्या कहना चाहती हैं आप?’’
‘‘क्या फादर पार्ल ने आपके साथ मेरे विषय में कोई बात की है?’’
‘‘हाँ की तो थी, परन्तु मैंने उसका उत्तर उसी समय दे दिया था।’’
‘‘मैं वह उत्तर सुनने के लिए उत्सुक हूँ।’’
‘‘देखिए मिस सील! मेरा विवाह हो चुका है। वह विवाह कैथोलिक चर्च में हुआ था। जब तक उसका मुझसे तलाक स्वीकार नहीं हो जाता, तब तक मैं दूसरा विवाह नहीं कर सकता।’’
‘‘वह विवाह तो रद्द हो गया है। आप दोनों उस समय अल्प-वयस्क थे। आपको विवाह करने का अधिकार ही नहीं था।’’
‘‘मुझको इस विषय में कोई सूचना नहीं मिली।’’
‘‘इसकी आवश्यकता नहीं। यदि आपने झूठ बोलकर किसी मजिस्ट्रेट के सामने विवाह किया होता तो आप पर सरकार मुकदमा चलाती और आपको दण्ड मिलता। परन्तु गिरजाघर में ऐसा नहीं होता। वहाँ झूठ बोलने का दण्ड नहीं होता। वहाँ तो प्रायश्चित ही करना पड़ता है। वह आपको अगले विवाह से पूर्व करने के लिए कह दिया जाएगा।’’
‘‘किन्तु मुझे विश्वास है कि मेरी पत्नी अभी तक मेरी प्रतीक्षा में बैठी है।’’
‘‘आप किस प्रकार जानते हैं यह?’’
‘‘मेरा मन इस बात का साक्षी है।’’
‘‘यही तो इग्नोरेंस है। स्वप्न की बातों पर विश्वास पढ़े-लिखे लोग नहीं करते।’’
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