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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


उसने अपनी इस शंका का समाधान करने का अपने मन में निश्चय कर लिया। वह रात्रि के भोजन के समय की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगा। उस समय वे दोनों एक साथ बैठकर भोजन किया करते थे।

आज भोजन के समय कुछ अन्य लोग भी आमन्त्रित थे। मिस नेमी सील और उसका पिता जैकब सील भी आए हुए थे। एक अन्य दम्पति भी थे। इस प्रकार छः व्यक्ति भोजन के लिए बैठे थे।

भोजन में इधर-उधर की बातें होती रहीं। मिस सील मिस्टर ग्रीन से बातें करती रही। वह यत्न कर रही थी कि बड़ौज उसको ‘प्रपोज’ करे। आज वह अपने सर्वोत्तम एवं आकर्षक पहरावे में थी और उसने श्रृंगार भी बहुत कौशल से किया हुआ था।

बड़ौज का मन उसमें अटका, वह तो बिन्दू पर लगा हुआ था। आज उसके मन में अन्य कोई विचार आ ही नहीं रहा था। उसका विचार था कि भोजन के समय वह उस रजिस्टर्ड पत्र की चर्चा चलाएगा। परन्तु बाहर के चार व्यक्तियों को देखकर उसने यह उचित नहीं समझा। भोजनोपरान्त रेवरेण्ड और दोनों अन्य पुरुष, बातें करते-करते बरामदे में चले गए। बड़ौज भी उनके पीछे जाना चाहता था, परन्तु मिस सील निर्णयात्मक बात करने के लिए उसके साथ-साथ चलती हुई कहने लगी, ‘‘मिस्टर ग्रीन! मैं आज आपसे एक विशेष बात करने के लिए आई हूँ।’’

बड़ौज ठहर गया। प्रश्न-भरी दृष्टि से वह उस लड़की की ओर देखने लगा। उसके इस प्रकार देखने से मिस सील ने कहा, ‘‘आइए, उधर लॉन के एकान्त में चलते है।’’

बड़ौज समझता तो था, किन्तु अपने मुख से वह बताना नहीं चाहता था कि उसको उसकी बात का ज्ञान है। इस कारण उसने कह दिया, ‘‘ठीक है रात भी बहुत सुन्दर है, चाँदनी छिटकी हुई है।’’

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