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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


पार्ल कहता था कि अच्छे-बुरे लोग तो सभी स्थानों पर होते हैं। परन्तु बड़ौज इस बात को नहीं मानता था। अब वह विचार करता था कि वह इस लिफाफे को खोल देगा तो वह चोर बन जाएगा और अपने को अपने इस व्यवहार से झूठा सिद्ध कर देगा।

यह वनवासियों की मान-मर्यादा का प्रश्न था। इस कारण वह उस पत्र को खोलता-खोलता रुक गया। अन्य पत्रों के साथ उसने वह लिफाफा भी रख दिया और धैर्यपूर्वक रेवरेण्ड पार्ल की प्रतीक्षा करने लगा।

पार्ल कहीं बाहर निरीक्षण के लिए गया हुआ था। वह तीन दिन तक नहीं आया। जब वह आया तो बड़ौज ने सारी डाक उसके सम्मुख रख दी। डाक देकर वह प्रतीक्षा में उसका मुख देखता रहा।

रेवरेण्ड ने एक-एक कर सारी डाक खोलकर पढ़ी और उसमें से कई पत्र बड़ौज को उत्तर लिखने के लिए दे दिए। जब उस रजिस्ट्री लिफाफे की बारी आई तो उसके आने के स्थान को पढ़कर पार्ल एक क्षण तक विचार करता रहा। फिर उसने उस पत्र को एकान्त में देखने के लिए, एक ओर रख दिया। बड़ौज को आभास मिल गया कि उस पत्र को एक ओर रखते समय पार्ल के हाथ काँप रहे थे और चौर्य दृष्टि से वह बड़ौज से वह बड़ौज को ओर देख भी रहा था।

जब सब डाक देखी जा चुकी तो पार्ल ने वह बन्द लिफाफा और कुछ खुले पत्र उत्तर देने के लिए अपने पास रख लिये थे। उन्हें उठाकर वह अपने सोने के कमरे की ओर चल पड़ा।

उसके इस व्यवहार से बड़ौज के सन्देह की पुष्टि होती गई। उसने भी इस विषय में अपना व्यवहार निश्चय करने के लिए एकान्त में जाना उचित समझा। वह अपने कमरे में जा अपने पलंग पर लेटकर विचार करने लगा। उसको विश्वास नहीं आता था कि रेवरेण्ड पार्ल सदृश धर्मात्मा व्यक्ति इतने काल तक झूठ बोलकर उसको भ्रम में डाल सकता है। किन्तु इस रजिस्टर्ड पत्र के विषय में पार्ल के व्यवहार ने उसको सन्देह में डाल दिया था। सैमुएल स्टीवनसन और बिन्दू, इन दो नामों का एक साथ होना घटना मात्र भी हो सकता है और इस प्रकार ये कोई अन्य लोग भी हो सकते हैं। फिर भी उसका मन कहता था कि यह उसकी बिन्दू और उसके प्रेमी का ही पत्र है।

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