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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘तो फिर मैं जाऊँ?’’

‘‘नहीं, मेरा यह अभिप्राय नहीं। यों तो तुम मेरे लिए भी बहुत लाभकारी सिद्ध हो रहे हो।’’

बड़ौज अब बाइबल का ज्ञाता हो गया था और रेवरेण्ड पार्ल के स्थान पर, कभी गिरजाघर में सरमन भी दिया करता था। उसकी बाइबल और विशेष रूप में ‘समरन ऑन दी माउण्ट’ पर विवेचना बहुत ही सुन्दर हुआ करती थी।

एक दिन रेवरेण्ड पार्ल के नाम एक बड़ा-सा लिफाफा आया। लिफाफा रजिस्टर्ड था। भेजने वाले का नाम लिखा था सैमुएल स्टीवनसन और पता था ‘बिन्दू ग्रोव, मनाली, कुल्लू (काँगड़ा) पंजाब।’

स्टीवनसन और बिन्दू का नाम पढ़कर बड़ौज का हाथ काँपने लगा। उसके हृदय की गति तीव्र हो गई। हस्ताक्षर कर डाकिये से रजिस्ट्री ले वह भीतर के कमरे में जाकर विचार करने लगा कि यह क्या है; क्यों है, और क्या वह इस लिफाफे को खोलकर देख ले!

वह मन में विचार करता था कि यदि यह स्टीवनसन और बिन्दू वही हैं जिनकी वह खोज कर रहा है तो उनका पता रेवरेण्ड पार्ल को था। इस पर भी उसने उसे बताया नहीं।

एक बार तो उसके मन में विचार आया कि चिट्ठी खोल ले। परन्तु अगले ही क्षण उसने यह निश्चय कर लिया कि वह बिना खोले यह लिफाफा रेवरेण्ड को दे दे और फिर उसको अपने मन का संशय बताकर उससे पूछे। पत्र खोलने से तो वह चोर बन जाएगा। वह सदा पार्ल को कहा कहता था–वनवासी चोरी नहीं करते। वे किसी दूसरे की स्त्री का अपहरण नहीं करते। स्त्रियाँ प्रायः अर्धनग्न रहती हैं, फिर भी बलात्कार की घटनाएँ नहीं होतीं। बड़ौज का कहना था कि यह सब दुर्गुण तो नगरों की सभ्यता के हैं।

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