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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


साथ ही वह स्टीवनसन को अपने धर्म-सम्बन्धी कार्यों के विषय में लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित करने लगा।

इस प्रकार सन् १९२९ आ गया। इस समय बड़ौज को विवाह करने के लिए कहा गया। असम की पहाड़ी लड़कियों से उसका सम्पर्क स्थापित करवाया गया। विचार यह था कि यदि वह भी विवाह कर किसी स्थान पर रहने लगे तो दो परिवार प्रभु की कृपा के पात्र बन जाएँगे।

इन दिनों रेवरेण्ड पार्ल को शिलांग में स्थायी रूप से पादरी और प्रॉक्टर नियुक्त कर दिया गया था। बड़ौज उसके साथ वहीं पर था। वहाँ खासी जाति की कई लड़कियों ने उसके साथ विवाह का यत्न किया। परन्तु बड़ौज सदा ही इनकार कर देता था। एक बार रेवरेण्ड पार्ल ने बड़ौज को बुलाकर कहा, ‘‘अब तुम पढ़-लिखकर ज्ञानवान हो गए हो। तुमको जीवन में स्थिरता प्राप्त करने के लिए विवाह कर कोई पक्का काम करने लगना चाहिए। यदि तुम चाहो तो मिस सील का पिता आया था और वह तुमसे अपनी लड़की का विवाह करना चाहता है। मिस सील कान्वेन्ट स्कूल में पढ़ाती है। तुमको भी वहाँ पढ़ाने का काम मिल सकता है।’’

‘‘परन्तु फादर! मुझे विवाह नहीं करना। यदि आप मुझे अपने काम से निकालना चाहते हैं तो बता दीजिए। मैं चला जाऊँगा।’’

‘‘यह बात नहीं, ग्रीन! मैं समझता हूँ कि जब तक तुम विवाह कर

पिता नहीं बन जाते, तुम उस बिन्दू का विचार नहीं छोड़ सकोगे। भगवान जाने वह कहाँ है? क्या करती है? किसके पास रहती है?’’

‘‘मैं तो नित्य स्वप्नों में उससे मिलता रहता हूँ और कभी-कभी तो वह मुझे बहुत दुःखी प्रतीत होती है।’’

‘‘यह सब मानसिक भ्रान्ति है। स्वप्नों पर तो मूर्खों का ही जीवन चल सकता है।’’

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