उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘डियर फादर,
मैंने विवाह कर लिया है और यहाँ आनन्द से विवाहित जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। यहाँ पहाड़ी लोगों में मैं धर्म-कार्य भी कर रहा हूँ। अब यहाँ से हिन्दुस्तान के धूलि-धूसरित और धूप से जलते हुए मैदानों में जाने को जी नहीं करता। यदि इस ओर का कोई कार्य हो तो करूँगा। अभी तक मैं और मेरी पत्नी यहाँ एक स्कूल खोले हुए हैं और इन सर्वथा असभ्य पहाड़ी गद्दी लोगों में सभ्यता और शिक्षा का प्रसार कर रहे हैं।’’
अब आर्चबिशप डॉक्टर बावेल और रेवरेण्ड सैमुएल पार्ल में विचार-विनिमय होने लगा कि मिस्टर ग्रीन को उसकी पत्नी का पता बताया जाए अथवा नहीं। मानवता के नाम पर बातचीत होती थी। रेवरेण्ड पार्ल का कथन था, ‘‘मानवता के नाते बिन्दू बड़ौज को मिल जानी चाहिए। यदि वह उसके पास न रहना चाहे तो फिर उसकी इच्छा है। उस स्थिति में वह आर्चबिशप पोप से सिफारिश कराकर उसका विवाह रद्द करवा दे और स्टीवनसन को उसके साथ नियमितरूपेण विवाह कर लेने की स्वीकृति दी जाए।’’
आर्चबिशप को इस योजना में दो बातें सन्देहजनक प्रतीत होती थीं। एक तो बड़ौज अपने मनोद्गारों को वश में नहीं रख सकेगा और बीवी को देखते ही उसमें अपने बाप-दादाओं का रक्त खौल उठेगा। वह बिन्दू पर, और सम्भव है, स्टीवनसन पर घातक आक्रमण कर बैठे।
दूसरी बात यह थी कि एक स्त्री जिस पर प्रभु की कृपा हो चुकी है, और वह भगवान के प्रकाश का ज्ञान पा चुकी है, पुनः वनवासियों के असभ्यतापूर्ण व्यवहार में रत हो जाएगी। वह प्रकाश से पुनः अज्ञान के अँधेरे में चली जाएगी। यह तो भारी पाप हो जाएगा।
इस प्रकार दो बड़े पादरियों में वाद-विवाद चलता रहा और बड़ौज अपने स्वामी के साथ बंगाल, बिहार, असम और बर्मा के देशो में घूमता रहा। इस सब समय में आर्चबिशप का प्राइवेट सेक्रेटरी रेवरेण्ड पार्ल मिस्टर स्टीवनसन से पत्र-व्यवहार करता रहा। वह उसमे गहरे सम्बन्ध पैदा करने का यत्न करने लगा।
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