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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...

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रेवरेण्ड पार्ल ने डॉक्टर चैस्टर बावेल को सैमुएल स्टीवनसन और बिन्दू की कहानी बताई तो उसकी खोज आरम्भ हो गई। स्टोप्सगंज से पता चला कि वह शिलांग में होने वाली मिशन-कांफ्रेन्स में सम्मिलित होने के लिए गया था और वहाँ से वह फिर लौटा नहीं। बम्बई से उसका पत्र आया था। कि वह इंण्लैण्ड जा रहा है।

बिन्दू के विषय में सूचना मिली कि वह नाबालिग थी और उसने तथा उसके पति ने झूठ बोलकर कि वे बालिग हैं, विवाह रजिस्टर करवा लिया था। बाद में जब विदित हुआ कि वे नाबालिग है तो दोनों का विवाह नाजायज़ मान लिया गया। यह आशा की जा रही थी कि जब वे दोनों वयस्क हो जाएँगे तब विवाह स्वयमेव नियमानुकूल हो जाएगा। परन्तु उससे पूर्व ही मास्टर स्टीवनसन उसको अपनी प्राइवेट सेक्रेट्री बनाकर कांफ्रेंस में ले गया।

साथ ही यह समाचार मिला कि बिन्दू एक सुन्दर गौरवर्णीय लड़की है और स्टीवनसन उसके सम्मोहन में ग्रस्त प्रतीत होता है।

कैथोलिक चर्च द्वारा ही इंग्लैण्ड में स्टीवनसन का पता मालूम किया गया और उसके विषय में जानकारी प्राप्त की गई। स्टीवनसन के बैंक से विदित हुआ है कि वह भारतवर्ष में कुल्लू के समीप मनाली नाम के स्थान पर रहता है। और नियम से प्रति छः मास में उसके पास रुपया जाता रहता है।

आर्चबिशप ने उसको पत्र लिखा कि जब से वह स्टोप्सगंज से आया है, उसका पता मालूम नहीं हुआ। इस समय ‘चर्च’ को उस जैसे योग्य और लगन से कार्य करने वाले युवको की सेवाओं की बहुत आवश्यकता है। क्या वह बता सकता है कि उसकी रुचि अब इस काम की ओर है, अथवा नहीं।

इसके उत्तर में स्टीवनसन ने लिखा–

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