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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इससे तो पादरी इस युवक की ओर देखता रह गया। फिर उसने बात बदलते हुए कहा, ‘‘ये यहाँ के स्कूल की मुख्याध्यापिका हैं। बहुत भली औरत हैं। इनकी बात झूठ नहीं हो सकती। परन्तु मैं इन्हें बता रहा था कि तुम ईमानदार व्यक्ति प्रतीत होते हो। साथ ही मेरे पास कभी कुछ अधिक तो रहता नहीं, जो कोई चुराकर ले जाए।...अच्छा, तुम पाँच मिनट में तैयार हो जाओ। शिलांग के लिए डाक की बस दो बजे जाती है।’’

बड़ौज और पादरी बस में साथ-साथ बैठे थे। दोनों मार्ग पर बात करते रहे। इन बातों में पादरी ने बताया, ‘‘मैं कलकत्ता के आर्चबिशप का प्राइवेट सेक्रेटरी हूँ। कलकत्ता के अधीन बंगाल, असम और बर्मा हैं। आज-कल मैं असम प्रान्त के दौरे पर चला हुआ हूँ। मुझे किसी सुदृढ़ और बहादुर युवक की आवश्यकता थी। मुझे आशा है कि तुम मेरा कार्य कर लोगे।’’

बड़ौज ने भी अपना पूर्ण इतिहास उसको बता दिया, साथ ही उसने यह भी बताया कि वह अपनी पत्नी को ढूँढ़ने के लिए निकला हुआ है। पादरी ने पूछा, ‘‘क्या करोगे ढूँढ़कर?’’

‘‘मेरा विश्वास है कि झूठे प्रलोभन देकर उसका मास्टर उसको भगा कर ले गया है। मेरा मन यह भी कहता है कि अब तक वह अपनी भूल समझ गई होगी। मैं उसको इस अवस्था से निकालना चाहता हूँ।’’

आर्चबिशप के प्राइवेट सेक्रेटरी का नाम रेवरेण्ड सेमुएल पार्ल था। वह रोमन कैथोलिक मतावलम्बी होने के कारण विवाहित स्त्री के पतित होने को बहुत बड़ा पाप मानता था। इसी कारण उसने उस स्कूल मास्टर का नाम पूछा जो बड़ौज की पत्नी बिन्दू को भगाकर ले गया था। बड़ौज ने कहा, ‘‘उसका नाम सैमुएल स्टीवनसन था।’’

‘‘स्टीवनसन!’’ विस्मय में पार्ल के मुख से निकल गया।

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