उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘वपतिस्मा कहाँ मिला था?’’
‘‘स्टोप्सगंज में।’’
‘‘तुम नाग हो?’’
‘‘जी।’’
‘‘नौकरी करोगे?’’
यह बात बड़ौज के मन की थी। उसने सिर हिलाकर स्वीकार किया, तो पादरी ने पूछ लिया, ‘‘क्या वेतन लोगे?’’
‘‘जिससे रोटी-कपड़ा चल सके।’’
‘‘क्यों, विवाह इत्यादि नहीं करोगे क्या?’’
बड़ौज अपनी बात बताना नहीं चाहता था। इस कारण मौन उनका मुख देखता रहा।
‘‘तुम्हारे पास कुछ सामान आदि है? मेरे साथ शिलांग चलना होगा।’’
‘‘जो कुछ इस समय शरीर पर है, इसके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है।’’
‘‘तो ठीक है, चलो चलें।’’
इस पर दूसरे पादरी ने अंग्रज़ी में कहा, ‘‘यह व्यक्ति सन्देहात्मक चरित्र का प्रतीत होता है। मैं तो आपको इसे नौकर रखने की राय नहीं दूँगा।’’
वहाँ उपस्थित उस औरत ने अंग्रेज़ी में ही कहा, ‘‘दुर्भाग्य से मैं एक नाग औरत को नौकर रख बैठी थी। छः मास की नौकरी के बाद जब मैं उस पर विश्वास करने लग गई तो वह मेरा सब कुछ लेकर भाग गई।’’
|