लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘परन्तु आप यह कष्ट क्यों करेंगी। यहाँ के लोग यह कह रहे हैं। आप कब तक वहाँ रह जाएँगे। कुछ तो इस प्रकार लंगड़े-लूले हो गए हैं कि वे पहचाने भी नहीं जा सकते। कोई कह नहीं सकता कि वे मनुष्य हैं भी कि नहीं।’’

सोफी के मन ने निर्णय कर लिया था, वह अपने दुराचारी पति की सेवा में जाने के स्थान पर इन अपाहिजों की सेवा में अधिक सुख प्राप्त करने की आशा कर रही थी। वार्डन ने घोड़ो को अस्तबल में भेज दिया। वहाँ उनकी मालिश कर घास-दाना आदि खाने के लिए दे दिया गया, जिससे कि अगले दिन वे लौट सकें।

इधर सोफी ने अगले दिन अस्पताल देखने का कार्यक्रम बना लिया। रात को भोजन के समय वार्डन, उसकी पत्नी, वहाँ का पादरी और बस्ती के कुछ बड़े-बड़े लोग और उनकी पत्नियाँ आई हुई थीं।

भोजन के समय बातचीत होने लगी। अस्पताल में रोगियों की चर्चा पर मिसेज़ काले बोलीं, ‘‘जो कुछ इन लोगों के लिए किया जा रहा है वह तो इनको स्वर्गतुल्य ही मानना चाहिए।’’

मिसेज़ काले स्वयं नागजाति की थी। उसका पति भी नागजातीय ही था। दोनों ईसाई हो चुके थे। पुरुष तो बस्ती के गिरजाघर में क्लर्क था और उसकी पत्नी स्कूल-अध्यापिका थी।

सोफी ने कहा, ‘‘कल हम आपका बताया हुआ स्वर्ग देखने के लिए जाएँगी। इस अस्तपताल के लिए सरकार कितना रुपया दे रही है?’’

वार्डन ने बताया, ‘‘दस लाख स्वीकार हुआ था। हमने अब और माँगा है। हमारा विचार है कि एक पक्का अस्पताल बन जाए जिससे रोगियों को लुमडिंग और सिलचर न जाना पड़े।’’

‘‘उसके लिए क्या माँगा गया है?’’

‘‘स्थायी अस्पताल की इमारत और प्रारम्भिक व्यय के लिए तीस लाख रुपया तथा चालू खर्च के लिए पाँच लाख रुपया वार्षिक का अनुदान। इससे पाँच सौ बेड का अस्पताल खुल जाएगा।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book