उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
इस पत्र को लिफाफे में बन्द कर उस पर अपने पति का नाम तथा पता लिखकर अपनी मेज़ पर रख, वह कपड़े पहन जाने के लिए तैयार हो गई। दिन निकलते ही उसने अर्दली को कहकर दो घोड़े जीन कसवाकर मँगवा लिये और सोना की प्रतीक्षा करने लगी। उसको विश्वास था कि वह आएगी।
सोना आई तो दोनों स्टोप्सगंज की ओर चल पड़ी। वहाँ पहुँच वे वहाँ के वार्डन, मिस्टर बीडन पाल, के घर के सामने जा खड़ी हुईं। बीडन पाल मिसेज माइकल को जानता था। अतः उसको अपने मकान के बाहर घोड़े से उतरते देखकर बाहर आया और गुड मॉर्निंग कर उसको घर के भीतर चलने के लिए कहने लगा। सोफी ने कहा, ‘‘हमारे घोड़ो की देखभाल होनी चाहिए। यह सरकारी माल है। साथ ही मेरी नौकरानी भी मेरे साथ आएगी।’’
वार्डन दोनों को अपनी कोठी के भीतर अपनी पत्नी के समीप ले गया। मिसेज़ पाल भी सोफी को जानती थी और यह विचारकर कि वह उस पूर्ण विभाग के मिशन की प्रबन्ध-कमेटी में है, आवभगत करने लगी।
सोफी ने बताया, ‘‘सुना है कि यहाँ के कैम्प-हस्पताल में नर्सों की बहुत कमी है। मैं देखने आई हूँ कि मैं इसमें किस प्रकार सहायता कर सकती हूँ।’’
‘‘हाँ, बहुत कमी है। पहले युद्ध के तुरन्त बाद तो बहुत ही कठिनाई हो गई थी। उस समय से यहाँ की प्रायः सब औरतें, यहाँ तक कि स्कूल की छात्राएँ तक भी इस काम पर नियुक्त कर दी गई थीं। अब बहुत-से आहत ठीक होकर चले गए हैं। फिर भी दो सहस्त्र से अधिक अभी यहीं पर हैं। इनके लिए हमारे पास केवल दस नर्सें हैं। कुछ औरतें स्वेच्छा से आकर अपना थोड़ा-थोड़ा समय दे रही हैं।’’
‘‘तो ठीक है। हम कल प्रातःकाल देखेंगी। हम दो तो अपना समय देने का विचार करके आई हैं।’’
|