उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
कदाचित् वे आशा कर रहे थे कि लड़की ही यहाँ आकर अपना मुख दिखाने से इंकार कर देगी अथवा अपने पति से आने की स्वीकृति नहीं पा सकेगी। वह कह देगी कि अपने पति से पूछकर कल मिलने आएगी।
परन्तु उनकी आशा के विपरीत उमाशंकर ने बताया कि वह पति सहित आ रही है। माँ मन-ही-मन प्रसन्न थी, यद्यपि उसने मुख से कुछ कहा नहीं। जब उसने पाचक को कहा कि दो प्याले और लगा दो तो यह स्पष्ट हो गया कि दोनों का यहाँ स्वागत होगा और किसी प्रकार का झगड़ा नहीं होगा। पिता तो भौंचक्क मुख देखता रह गया था। वह समझ नहीं सका था कि लड़की और दामाद के आने पर क्या व्यवहार स्वीकार करे।
उमाशंकर को यह विदित नहीं था कि प्रज्ञा का पति एक मुसलमान समुदाय का घटक है। वास्तव में यही मुख्य कारण था प्रज्ञा का, अपने माता-पिता को मुख न दिखाने का। परन्तु उमाशंकर के मन में प्रज्ञा के विवाह के उपरान्त माता-पिता के घर में न आने का कारण यह प्रतीत हुआ था कि उसने विवाह माता-पिता से पूछे बिना किया है और फिर हिन्दू रीति-रिवाज से करने के स्थान कचहरी में जाकर किया है।
माँ का विचार था कि यदि प्रज्ञा मोटरगाड़ी में आएगी तो दो तीन मिनट में पहुँच जाएगी और हुआ भी ऐसे ही। पाचक अभी नये प्याले लाकर रख ही रहा था कि प्रज्ञा आई और हाथ जोड़ माता-पिता को प्रणाम कर भाई के समीप सोफा पर बैठ गई।
प्रज्ञा के पति मुहम्मद यासीन ने पहले प्रज्ञा की माताजी की कदम-बोसी की और फिर उसके पिता रविशंकर की ओर हाथ जोड़ नमस्ते कर सामने खड़ा हो गया। अब रविशंकर ने उसे कहा, ‘‘हजरत! तशरीफ रखिए...।’’ वह कुछ कहना चाहता था, परन्तु उसके लिए उचित शब्द नहीं पा रहा था।
महादेवी ने ही उसे समीप सोफा पर बैठ जाने का संकेत कर कह दिया, ‘‘भले मनुष्य! यदि किसी जगह से कोई चीज उठाकर अपने पास रखी है तो चीज के मालिक से पूछे बिना ऐसा करना चोरी कहाता है।’’
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