उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘माताजी!’’ मुहम्मद यासीन ने कहा, ‘‘यह कानून की बात तो मैं जानता हूँ, परन्तु मैंने ऐसा कुछ किया नहीं। मैं उस चीज को लेने के लिए उसकी जगह पर गया नहीं और न ही उसे उठाकर अपने घर ले गया हूँ। वह चीज अपने को लावारिस समझ, वहाँ चली गई है।
‘‘मैंने उस चीज से पता किया है। वह कहती है कि वह लावारिस थी। उसका मतलब यह है कि वह बालिग हो चुकी थी और कानून से लावारिस मानी जाती थी।
‘‘और माताजी! वह तो अभी भी अपने को किसी की मलकीयत नहीं समझती। मेरे घर में तो वह अपनी मर्जी से रह रही है और कहाँ वह मालकिन बन रहती है।’’
महादेवी इस संक्षिप्त से वार्तालाप से यह समझ गई कि गिला लड़के से नहीं करना चाहिए। यह तो उसकी लड़की है जो अपने माता-पिता का अपने पर कोई अधिकार नहीं समझती।
इस कारण वह निरुतर हो गई और उसने प्याले तथा प्लेटें सबके सम्मुख रख, उनमें मिठाई डालनी आरम्भ कर दी। मुहम्मद यासीन मुस्कराता हुआ साथ की कुर्सी पर बैठा अपने श्वसुर पण्डित रविशंकर से बातें करने लगा।
उसने श्वसुर को कहा, ‘‘कुछ गलती हमसे हुई है। यह मैं अब महसूस करता हूँ। मगर उस समय जब गलती हुई थी, मैं यह समझा था कि आप भी उसे गलती नहीं मानते। उसे हमारा ठीक अमल ही मानते हैं। आज का यह दावतनामा सुन मेरे ख्यालों में तबदीली हो गई है। मैं अपने और आपकी लड़की के ख्यालातों में गलती समझ गया हूँ। इसीलिए दावत की खबर पाते ही मैं चला आया हूँ।
‘‘आज मेरी तबीयत कुछ अलील थी। इसलिए मैं दुकान पर नहीं गया था और घर पर ही था। इस वजह से आपके दावतनामे को फौरन मंजूर करने में आपकी लड़की को दिक्कत नहीं हुई।’’
रविशंकर ने कुछ कहने के लिए कह दिया, ‘‘यह सब उमाशंकर की करनी का फल है।’’ और उसने अपने अमरीका से आए लड़के की ओर संकेत कर दिया।
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