उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
इस समय पाचक सबके लिए चाय, बिस्कुट और कुछ मिठाई एक ट्रे में रख कर ले आया। जनवरी मास मध्याह्नोत्तर का समय था। हवाई पत्तन पर जहाज तीन बजे उतरा था। टैक्सी इत्यादि से आते-आते चार बज गए थे। इस कारण माँ ने आते ही पुत्र और दूसरों के लिए चाय लाने के दिया था। अब यह जान कि लड़की भी आ रही है, उसने पाचक को कह दिया, ‘‘दो प्याले और ले आओ। चाय का पानी भी और बना लाओ।’’
प्रज्ञा अपने पति के साथ ही आई। उसने विवाह किया था बम्बई के एक खोजे के लड़के मुहम्मद यासीन से। मुहम्मद यासीन के पिता का नाम था अब्दुल हमीद। यह बम्बई का एक सौदागर था। उसकी तीन बीवियाँ थीं और मुहम्मद यासीन पहली बीबी से, माँ का एकमात्र पुत्र था। इस कारण पिता ने पुत्र को दिल्ली कनाट प्लेस में एक दुकान ले दी थी और रहने को मकान ग्रेटर कैलाश में बनवाकर दोनों को दिल्ली भेज दिया था।
प्रज्ञा और मुहम्मद यासीन वयस्क थे और उन्होंने कोर्ट में विवाह किया था। मुहम्मद यासीन की माँ सरवर ने बहू को आशीर्वाद देकर घर पर रख लिया था।
विवाह की सूचना प्रज्ञा के माता-पिता को नहीं दी गई थी। विवाह कर पति-पत्नी, दोनों हनीमून मनाने कश्मीर चले गए थे।
लड़की के एकाएक लापता हो जाने पर रविशंकर और प्रज्ञा की माँ महादेवी को बहुत चिन्ता लगी। पुलिस में रिपोर्ट लिखाई गई थी, परन्तु खोज नहीं हो सकी। पीछे जब एक महीना भ्रमण कर पति-पत्नी लौटे तो किस पड़ोसी ने दोनों को इकट्ठे घूमते देख पंडित रविशंकर को बता दिया कि उसकी लड़की कनाट प्लेस के एक दुकानदार मुहम्मद यासीन के साथ घूमती हुई देखी गई है।
इस पर रविशंकर ने पता किया और जब सूचना का समर्थन मिला तो उसने लड़की को मन से निकाल दिया। इस घटना को हुए छः मास से ऊपर व्यतीत हो चुके थे। अब लड़का अमरीका से डॉक्टरी पढ़कर आया तो माता-पिता, उसको रोक नहीं सके कि बहन को न बुलाए।
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