उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘....।’’
‘‘भला माँ लड़की को घर आने से कैसे रोक सकती है?’’
‘‘....।’’
‘‘देखो प्रज्ञा। तुमको तो विवाह कर सबसे पहले अपने माता-पिता से आशीर्वाद लेने आना चाहिए था।’’
‘‘....।’’
‘‘डर किस बात का? तुमने कुछ पाप किया है क्या?’’
‘‘....।’’
‘‘हाँ, आ जाओ! मुझे विश्वास है कि तुम्हारा और तुम्हारे पति का यहाँ अनादर नहीं होगा।’’
‘‘.....।’’
‘‘हाँ, तुरन्त चली आओ। तुम्हारी भाभी उत्सुकता से तुम्हारे दर्शनों की प्रतीक्षा कर रही हैं।’’
उमाशंकर ने चोंगा रखा तो पिता ने पुत्र से पूछ लिया, ‘‘तो वह आ रही है?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘और उसने बताया है कि क्यों उसने हमें अपने विवाह की सूचना नहीं दी?’’
‘‘कहती है कि उसे कुछ लज्जा, कुछ झिझक, कुछ भय और संशय था। इस कारण बताए बिना उसने विवाह किया और फिर अभी तक बताने नहीं आयी। मैंने उसे कहा है कि चली आओ, मैं उसका मार्ग साफ कर दूँगा।’’
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