उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
सेवक मोटर से उमाशंकर का सामान ले आया था। उसने एक सूटकेस और एक ब्रीफकेस ड्राइंग रूम के एक कोने में रख दिया था। शिवशंकर ने चाबी ली और सूटकेस खोला। उसमें से एक प्लास्टिक की अमेरिकन ढंग की पोशाक पहने ‘डौल’ निकालकर ले आया।
इस समय उमाशंकर माँ से बहन के घर का टेलीफोन नम्बर पूछ टेलीफोन के सामने जा बैठा था। माता-पिता लड़के की ओर देख रहे थे। वे सुनना चाहते थे कि क्या बातचीत होती है।
शिवशंकर ने प्लास्टिक के पारदर्शक डिब्बे में ‘डौल’ को सामने सैंटर टेबल पर रख दिया और टेलीफोन पर बड़े भाई की बात सुनकर समीप आ गया।
जब दूसरी ओर से चोंगा उठाया गया तो उमाशंकर ने प्रश्न किया, ‘‘प्रज्ञा हो?’’
दूसरी ओर से उत्तर आया तो उमाशंकर ने कहा, ‘‘मैं उमाशंकर बोल रहा हूँ और अभी-अभी यहाँ पहुँचा हूँ।’’
उधर से कुछ कहा गया। इधर से भाई ने कहा, ‘‘मैंने अपने पहुँचने की सूचना पिताजी को भेज दी थी। मेरा विचार था कि तुम यहाँ होगी और तुम्हें भी पता लग गया होगा।’’
उधर की बात सुनकर उमाशंकर ने पुनः कहा, ‘‘परन्तु तुमने अपने विवाह का समाचार अपने अन्तिम पत्र में भी नहीं लिखा था। मैं कैसे जान सकता था कि तुम पिताजी के घर में नहीं हो? मैं तो दोनों नम्बर एक ही मकान के समझता था।
‘‘देखो प्रज्ञा! तुमने कहा था कि कोई गोरी अमरीकन बीबी लेकर आऊँ। मैंने तुम्हारा कहा मान लिया है, परन्तु उसकी अगवानी के लिए तुमको यहाँ आना चाहिए।’’
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