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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


ज्ञानस्वरूप ने अब्दुल रशीद की दिखाई हुई चिट्ठी की बात बताई तो उमाशंकर ने कह दिया, ‘‘मैं समझता हूँ कि यह जुलाई का महीना है। कमला वयस्क होनेवाली है पन्द्रह जनवरी को। अब छः महीने ही तो रह गए हैं। हमें कोई ऐसी बात नहीं करनी चाहिए, जिससे कोई कानूनी पेचीदगी उत्पन्न हो जाए। हमें छः महीने और प्रतीक्षा करनी चाहिए।’’

ज्ञानस्वरूप ने कहा, ‘‘इसी बात से डरते हुए मैंने अब्दुल रशीद से वह पत्र माँगा था। उसने कहा है कि वकील से राय कर वह पत्र देगा।’’

इस पर महादेवी ने कह दिया, ‘‘तो छोड़ो इस बात को। विवाह अभी छः महीने बाद होगा।’’

इस पर प्रज्ञा ने कहा, ‘‘यह बिल्कुल वैसे ही हो रहा है, जैसे मैं आशा कर रही थी।’’

‘‘क्या आशा कर रही थी?’’ रविशंकर ने पूछ लिया।

‘‘मैं यही आशा कर रही थी कि आप लोग शीघ्र ही आस्तिक हो जाएँगे, परन्तु तब आप लोग अपने को परमात्मा को अस्वीकार करनेवाले कहेंगे।’’

महादेवी इस युक्ति को समझी नहीं। उसने कहा, ‘‘प्रज्ञा! तुम कुछ उल्टी-सीधी बात करने लगी हो। मैं ज्ञानस्वरूप से कहूँगी कि तुम्हें एक-आध महीने के लिए किसी पहाड़ी स्थान पर आराम करने भेज दे।’’

प्रज्ञा हँस पड़ी और बोली, ‘‘माताजी! आप मुझे पागल हो रही समझ रही हैं?’’

‘‘पागल नहीं, परन्तु शिथिल विचारोंवाली।’’

‘‘कैसे?’’

‘‘तो तुम अपने श्वसुर को आस्तिक कैसे कहती हो?’’

‘‘माताजी! केवल इतना ही नहीं, वरन् जब से पिताजी ने हनुमानजी के मन्दिर में जाना छोड़ा है, तब से मैं इन्को भी ईश्वर-भक्त मानने लगी हूँ।’’

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