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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


महादेवी ने पाचक को बुलाकर कॉफी लाने के लिए कह दिया। जब पाचक गया तो ज्ञानस्वरूप ने अपने घर की अवस्था का परिचय दे दिया।

उसने कहा, ‘‘आज बम्बईवाले सब लोग श्रीराम रोड पर चले गये हैं और मैं अपने कन्धों पर से भारी बोझा उतर गया अनुभव करता हूँ।’’

‘‘मेरा भाई अपने अब्बाजान से जेल में मिलने गया था और वह मुझे दुकान पर एक चिट्ठी दिखा गया है जो अब्बाजान ने नगीना की माँ को लिखी है। चिट्ठी में लिखा है कि वह नगीना को अपनी मर्जी से शादी की इज़ाज़त दे दे।

‘‘मैंने यह कहा है कि वह चिट्ठी मुझे दे तो कमला की शादी का प्रबन्ध किसी वकील से राय करने के बाद करूँ। इस पर अम्मी सालिहा ने वह चिट्ठी तो नहीं दी। उसने अपने वकील से राय कर चिट्ठी देने की बात कही है।’’

रविशंकर यह बात सुन हँस पड़ा। वह हँसते हुए बोला, ‘‘मैं समझता हूँ कि अब्दुल हमीद साहब का ऐतकाद खुदा पर से ऐसे ही उठ गया है जैसे मेरा हनुमानजी पर से उठ गया है। हकीकत यह है कि यह सब झगड़े खुदापरस्तों ने ही मचाए हुए थे।’’

इस समय उमाशंकर आ गया। वह मरीज़ को औषधि दवाईखाने से देकर भीतर आया था। ज्ञानस्वरूप इत्यादि को बैठा देख वह प्रश्नभरी दृष्टि में उनकी ओर देखने लगा।

बात प्रज्ञा ने की। उसने बताया, ‘‘आज कमला की बम्बईवाली अम्मियाँ और भाई-बहन सब अपने मकान में चले गए हैं। इस कारण मैंने ही अम्मी से कहा था कि हमें यहाँ माताजी को यह खुश-खबरी सुनाने आना चाहिए।’’

‘‘अम्मी ने कहा कि रात को सब एक साथ चलेंगे।’’

‘‘जब यह आए तो इन्होंने एक और खबर सुनाई है। इसलिए हम आप लोगों से राय करने आए हैं।’’

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