उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
एक सप्ताह की भाग-दौड़ के उपरान्त दिल्ली, सिविल लाइन्स में एक कोठी श्रीराम रोड पर मिल गयी, एक हजार रुपया महीना किराये पर। और एक सप्ताह ग्रेटर कैलाश में रहने के उपरान्त उन सब को श्रीराम रोडवाली कोठी में जाना पड़ा। जिस दिन सब लोग जानेवाले थे, उस दिन अब्दुल हमीद का एक पत्र सालिहा को मिला। सालिहा ने अब्दुल रशीद को पत्र दिखाया तो उसने अपने भाई ज्ञानस्वरूप को दिया। ज्ञानस्वरूप पढ़कर हैरान हो गया। इस पत्र में अब्बाजान ने नगीना के विवाह की स्वीकृति दे दी थी।
जब ज्ञानस्वरूप की दोनों छोटी अम्मियाँ और उनके बच्चे श्रीराम रोड पर चले गये तो ज्ञानस्वरूप ने उमाशंकर को टेलीफोन कर दिया।
टेलीफोन पर रविशंकर मिला। जब ज्ञानस्वरूप ने अपने श्वसुर की आवाज पहचानी तो उसने नमस्कार कर दी और उमाशंकर के विषय में पूछने लगी।
‘‘क्या काम है?’’
‘‘कुछ अपने और कमला के विषय में विचार करना है।’’
‘‘तो आ जाओ! वह यहीं कालोनी में एक रोगी को देखने गया हुआ है। जब तक तुम आओगे, वह भी लौट आएगा।’’
अतः ज्ञानस्वरूप, प्रज्ञा और कमला रविशंकर के मकान पर पहुँच गये।
उमाशंकर अभी आया नहीं था, परन्तु महादेवी और शिव तथा शिव की पत्नी इनसे मिलने के लिए ड्राइंगरूम में आये हुए थे।
ज्ञानस्वरूप के आते ही रविशंकर ने पूछा, ‘‘क्या लोगे? मैं तो भोजन के उपरान्त दूध लिया करता हूँ।’’
‘‘पिताजी!’’ ज्ञानस्वरूप ने कहा, ‘‘हमें तो इस समय दूध लेने का अभ्यास नहीं है। रात के खाने के उपरान्त यदि एक-एक प्याला कॉफी मिल जाये तो बहुत ठीक होगा।’’
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