उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
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उसी रात ज्ञानस्वरूप और उमाशंकर में भी बात हो गई।
उमाशंकर का कहना था, ‘‘समस्या यह नहीं कि कमला कहाँ रहे, समस्या यह है कि यह बम्बईवाला परिवार कहाँ रहे?’’
‘‘मैं समझता हूँ कि इसके विषय में अपनी दूसरी अम्मियों से राय करिये। इनके लिए मैं मकान ढूँढ़ने में आपकी सहायता कर दूँगा।’’
‘‘मैं यह समझता हूँ कि कमला के मार्ग में बाधा न तो आपके अब्बाजान की है न ही इन बच्चों की। यह उसकी अपनी आयु की है। मैं अपना यह नैतिक कर्त्तव्य समझता हूँ कि उसके बालिग होने से पहले उससे विवाह न करूं।’’
इस वार्तालाप का परिणाम यह हुआ कि अब्दुल रशीद को ज्ञानस्वरूप दिल्ली एस.डी.एम. के सामने ले गया। वहाँ उसने अर्जी कर दी कि अब्दुल हमीद से मुलाकात की स्वीकृति मिले।
वह मिली तो निश्चित दिन सालिहा और अब्दुल रशीद अब्दुल हमीद से मिलने गये।
वहाँ से लौटने पर अब्दुल रशीद ने कहा, ‘‘अब्बाजान ने हमें वह स्थान बताया है जहाँ से हम खानदान के रिहायश के लिए खर्चा पा सकेंगे।
‘‘दूसरी बात यह है कि मुकद्दमा करना फुजूल है। अपने छूटने की वह खुद कोशिश करेंगे। तीसरी बात यह कि बच्चों की तालीम में आपकी तथा आपकी बीवी की मदद न ली जाये। आखरी बात यह है कि नगीना शादी कर प्रज्ञा के भाई के घर जायेगी तो यह जुर्म होगा। इस कारण वह ऐसा न करे।’’
ज्ञानस्वरूप इस मामले में कोई भी बात गैर-कानूनी करना नहीं चाहता था।
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