उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘भाईजान!’’ अब्दुल रशीद का कहना था, ‘‘अभी कुछ दिन के लिए तो यहाँ ही हम रहेंगे। मैं कल मजिस्ट्रेट से अब्बाजान के साथ मुलाकात की इजाजत लूँगा और उनकी राय से बात करूँगा।’’
‘‘ठीक है, मैं यही चाहता था। तुम अब्बाजान से मुलाकात कर लो और उनसे इन सवालों का जवाब पता करना। पहली बात यह कि दिल्ली में रिहायश के लिए मकान का भाड़ा और उसमें रहने के खर्चे का प्रबन्ध कैसे होगा? यहाँ इस मकान में आर्ज़ी तौर पर रह सकते हो, पक्का प्रबन्ध तो अलग कहना ही होगा।’’
‘‘दूसरी बात यह है कि उनको छुड़ाने की अर्जी यहाँ के सर्वोच्च न्यायालय में की जाय या नहीं और अगर की जाय तो किस बिना पर की जाये?
‘‘तीसरी बात यह पूछनी है कि नगीना अपनी ससुराल रहना चाहती है। अभी दस महीने तक वह उनके मातहत है। वह इस काल में ससुराल जाने की इजाजत देते हैं या नहीं?
‘‘चौथी बात है तुम्हारे छोटे भाई-बहनों की। उनकी तालीम में मैं दखल दे सकता हूँ या नहीं?
‘‘इन चार बातों के बारे में अब्बाजान से पता करना और मुझे बताना। तब मैं तुम्हारी मुनासिब मदद करूंगा।’’
‘‘यही मैंने सोचा है। हम सबको एक लम्बे अर्से के लिए यहाँ रहना है तो आपसे अलहदा ही रहना होगा। अम्मी कह रही हैं कि आपकी बीवी जिसके सिर पर सवार हो जाती है, वह मोमिन रह सकता ही नहीं।’’
‘‘मोमिन के मायने जानते हो रशीद?’’
‘‘मुसलमान।’’
‘‘नहीं रशीद! मोमिन के मायने हैं खुदा पर ईमान रखनेवाला इन्सान। इसमें मुसलमान या किसी मज़हब का जिक्र नहीं और तुम्हारी अम्मी खुदा से मुन्किर हो गई हैं। इसलिए उसे प्रज्ञा की संगत पसन्द नहीं।’’
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