उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘इस पर उन्होंने कहा है कि मकान उनका है, उमाशंकर का नहीं। इसलिए उमाशंकर मेरे यहाँ आने को रोक नहीं सकता। हाँ, मेरे भाई और अब्बाजान ही रोक सकते हैं। इस कारण उनसे राय कर ही आ सकती हूँ।’’
‘‘परन्तु मुख्य बात तो अब्बाजान की है। उनकी स्वीकृति कैसे लोगी?’’ ज्ञानस्वरूप का प्रश्न था।
‘‘इस विषय में भी आपसे राय करनी है।’’
‘‘मैं सायंकाल जब आऊँगी तो उमाशंकर और उनकी माताजी को भी बुला लूँगा। सब मिलकर विचार कर लेंगे।’’
रात नौ बजे के लगभग ज्ञानस्वरूप आया और उसके बुलाने पर उमाशंकर और महादेवी भी वहाँ आ पहुँचे।
ज्ञानस्वरूप के आने से पूर्व ही, बम्बई से आये सातों प्राणी खा-पीकर दो कमरों में सोने का स्थान पा चुके थे। वहाँ से आये पाँच बच्चों में से सबसे बड़ा, नगीना की माँ का लड़का था। यह नगीना से छोटा था। नाम था अब्दुल रशीद। वह अपने भाई की प्रतीक्षा में ड्राइंगरूम में बैठा था। ज्ञानस्वरूप आया तो अब्दुल रशीद ने आदाब अर्ज कर कहा, ‘‘भाईजान! मैंने बम्बई के एक वकील से राय की थी। उसका कहना है कि इस पकड़े गये पर एतराज ‘सुप्रीम कोर्ट’ में किया जा सकता है। इसलिए मैंने यहाँ चला आना निहायत जरूरी समझा है।’’
‘‘एक बात और भी है। यह पता चला है कि अब्बाजान यहाँ दिल्ली जेल में लाकर रखे गए हैं। उनसे मुलाकात की सहूलियत के लिए भी हम सबने दिल्ली में आकर रहना मुनासिब समझा है।’’
‘‘मगर रशीद! यह मैंने तो पूछा ही नहीं कि तुम यहाँ क्यों आये हो? एक-दो दिन के लिए ही इस कोठी में रहने का इन्तजाम हो सकेगा। मगर मैं समझ रहा हूँ कि अब्बाजान का मामला एक-आध दिन में सुलझेगा नहीं। इसलिए आपके लिए एक अलहदा मकान लेना पड़ेगा। दिल्ली में मकानों की बहुत किल्लत है। अच्छे मकानों का भाड़ा बहुत ज्यादा होता है।’’
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