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उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
बिल पारित हो गया तो राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिये।
इस समाचार के दस दिन उपरान्त ज्ञानस्वरूप दुकान पर बैठा था कि घर से प्रज्ञा का टेलीफोन आया, ‘‘आपकी अम्मियाँ और सब बच्चे यहाँ आए हुए हैं। वे ड्राइंगरूम में बैठे हैं।’’
ज्ञानस्वरूप का प्रश्न था, ‘‘ये लोग किस मतलब से आये हैं?’’
‘‘प्रज्ञा ने बताया, ‘‘अब्बाजान ‘मिसा’ में पकड़े गये हैं और उनके सारे कारोबार पर ताले लगा दिए गए हैं। उनके बैंक एकाउण्ट फ्रीज़ कर दिए गए हैं। बम्बईवाले मकान को भी ताला लगाया गया है। इस कारण पूर्ण परिवार यहाँ रहने के लिए आया है।’’
‘‘प्रज्ञा! मेरी राय है कि इन सबको अभी तो घर पर रहने को देना चाहिए।’’
‘‘जी! मैं यह नहीं कह रही थी कि मैं उनको स्थान नहीं दे रही। मैं यह कह रही हूँ कि ये लोग झगड़ा करेंगे। हमारी दिनचर्या इनके लिए कुफ्र समझ आयेगी। आपकी सबसे छोटी अम्मी हमीदा तो मुझे संस्कृत की पुस्तक पढ़ते देख नाक-भौंह चढ़ाने लगी थीं।’’
‘‘इनको अभी तो खिलाओ-पिलाओ। मैं सायंकाल आऊँगा तो विचार कर लूँगा।’’
प्रज्ञा ने कहा, ‘‘आपकी बहिन कमला कुछ कह रही है।’’
‘‘तो उसे टेलीफोन दे दो।’’
कमला ने कहा, ‘‘मैंने भाभीजी की माताजी को कहा है कि मैं उनके घर जाकर रहना चाहती हूँ। उनका कहना है कि आपसे पूछकर आ सकती हूँ।’’
‘‘और उमाशंकर से पूछ कर नहीं?’’
‘‘मैंने यही कहा था कि वह अपने बड़े लड़के से तथा पिताजी से पूछ लें और मेरे लिए एक कमरा खाली करा दें।’’
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