उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
अब्दुल हमीद ने पुत्र से पूछा, ‘‘यासीन! अब क्या विचार है?’’
‘‘किस बारे में पूछ रहे हैं अब्बाजान?’’
‘‘नगीना से शादी की बाबत?’’
‘‘मेरी शादी तो हो चुकी है। मेरे घर में लड़का भी हो चुका है।’’
‘‘मेरा अभी भी कहना है कि लड़के को लेकर बीवी को घर से निकाल दो। नगीना से शादी कर लो।’’
‘‘अब्बाजान! यह गुनाह होगा। मैं यह नहीं करूँगा।’’
‘‘वह क्या होता है?’’
‘‘झूठ बोलना तो हमारे मजहब में बहुत बड़ा गुनाह माना है।’’
‘‘हाँ! मगर गुनाह वह है जो झूठा साबित हो सके। देखते नहीं हो कि सरकार ने निर्वाचनों में क्या कुछ किया है? क्योंकि एक भी हरकत साबित नहीं की जा सकती, इस कारण कुछ भी गुनाह नहीं।’’
‘‘अब्बाजान नेक और बद में फर्क करनेवाला हाकिम मेरे भीतर बैठा है। वह गलत नहीं कहेगा। इसलिए मेरा झूठ वहाँ साबित हो जाएगा।’’
‘‘तुम बेवकूफ हो। सुन लो, अगर तुमने मेरी बात तीन महीने के भीतर नहीं मानी तो तुम जेल में होगे और तुम्हारे मकान पर मेरा कब्ज़ा होगा। तुम्हारी बीवी अपने बाप के घर के बर्तन साफ करती होगी। मैं उसे एक-एक पैसे के लिए मोहताज बना दूँगा।’’
‘‘अब्बाजान! आप जो कुछ कह रहे हैं, वह कर सकते हैं। मगर आप मुझे अपनी बीवी के खिलाफ झूठा दावा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।’’
यह मई का दूसरा सप्ताह जा रहा था और लोकसभा ‘मिसा’ कानून पारित कर रही थी कि जिस किसी पर तस्करी करने का प्रमाण मिले तो उसे बिना मुकद्दमें के दो साल के लिए नजरबंद दिया जा सकता है। ज्ञानस्वरूप को मालूम था कि यह कानून पास हो जायेगा। विचित्र बात यह थी कि विरोधी पक्षवाले भी इस कानून को बनाने में सहायता दे रहे थे जबकि इस कानून के दुरुपयोग पर कोई रोक न थी।
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