उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
प्रज्ञा अभी दुर्बल थी। इस कारण वह एक स्थान पर बैठी ही रही। कमला उसके समीप सोफा पर बैठी हुई थी। प्रज्ञा ने लड़की को देखा तो कह दिया, ‘‘शिव बड़े भाई पर बाजी ले गया है।’’
‘‘मुझे इससे प्रसन्नता हुई है।’’
‘‘यह सब माताजी की चतुराई का परिणाम है।’’
रविवार को विवाह हो गया और घर में बहू आ गई। स्वाभाविक रूप में लोग उमाशंकर से पूछते थे, ‘‘उमाजी, आप कब घोड़ी पर बैठेंगे?’’
उमाशंकर मुस्कराकर कह देता, ‘‘अभी जल्दी किस बात की है?’’
‘‘और शिव को शादी की आप से अधिक जल्दी थी?’’
‘‘जरूर जल्दी रही होगी, तभी तो वह मुझसे आगे निकल गया है।’’
प्रज्ञा इस विवाह से बहुत प्रसन्न थी। वह समझ रही थी कि शिव के विवाह से दोनों भाइयों में द्वेष नहीं बढ़ेगा।
इस विवाह की सूचना अब्दुल हमीद को मिली। वह आजकल सरकार के सत्ताशील दल को जिताने का यत्न कर रहा था। इस कारण उसका दिल्ली के नेताओं से सम्पर्क गहरा हो रहा था।
ज्ञानस्वरूप को इस तस्कर का सत्ताधारी दल से सम्पर्क सुहाता नहीं था, परन्तु वह राजनीति से पृथक् रहने का यत्न करता रहा था। इसी कारण जब भी वह पिता से मिलने जाता था, वह उनसे कभी नहीं पूछता था कि वह किस काम से दिल्ली आये हैं। उसने बम्बई के कारोबार के विषय में भी कभी नहीं पूछा था।
मार्च १९७१ में निर्वाचन हुए और सत्ताधारीदल पूर्ण बहुमत से लोकसभा में आ गया। केन्द्र में दो-तिहाई से भी अधिक संसद-सदस्य इस दल के थे।
निर्वाचन का परिणाम निकलने पर अब्दुल हमीद पुनः ज्ञानस्वरूप को मिलने आया। दोनों वोलगा रेस्टोराँ में बैठे चाय लेने जा पहुँचे।
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