उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘परन्तु मैं समझता हूँ कि चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। सायंकाल घर पर आऊँगा तो शेष बात बताऊँगा।’’
सरस्वती को इस बात से सन्तोष हुआ। समीप खड़ी कमला माँ की टेलीफोन पर बात सुन रही थी। उसने माँ को कहते सुना था, ‘‘परमात्मा को धन्यवाद है।’’
इस कारण यह पूर्ण बात का आशय समझ गयी थी। उसने अम्मी के चोंगा रखते ही कहा, ‘‘मैं यही तो कह रही हूँ।’’
‘‘क्या कह रही हो?’’
‘‘यही कि चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। सत्य हृदय से परमात्मा की संगत में रहनेवाले से कोई गलत बात होने की आशा नहीं की जा सकती।’’
अम्मी कमला को लेकर उसके कमरे में आ गयी थी। वहाँ आसन पर बैठते हुए कमला ने कहा, ‘‘सुना है अपनी प्रधानमन्त्री भी एक ब्रह्मचारी से योग की क्रियाएँ सीखा करती हैं।’’
‘‘परन्तु उनका योग सांसारिक वैभव-प्राप्ति के लिए है और यह इस सृष्टि का नियम है कि जो-जो जिस-जिसके लिए तपस्या करता है, वह वैसा ही फल पाता है। परन्तु सांसारिक पदार्थ तो नाशवान् हैं। उनकी प्राप्ति स्थाई रूप में नहीं होती।’’
‘‘और तुम्हें पति स्थाई रूप में मिल रहा है?’’ माँ ने मुस्कराते हुए पूछा।
‘‘यह अभी नहीं कह सकती कि मेरी परमात्मा से योग में स्थिति इस दूरी तक पहुँची है अथवा नहीं। परन्तु अम्मी। मेरा यत्न तो समाप्त नहीं हुआ। वह तो चलेगा ही।’’
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