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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


वह भी लड़के के पीछे-पीछे कमरे से निकल गया। उसे भय था कि शिव कहीं अपना किसी प्रकार से अनिष्ट न कर ले।

रविशंकर के इस प्रकार जाने पर कमला ने ही कहा, ‘‘पिताजी व्यर्थ में चिन्ता कर रहे हैं। भाई साहब अपनी दुकान पर जा रहे हैं।’’

चाय समाप्त हुई तो प्रज्ञा ने भीतर जा आराम करने की इच्छा प्रकट की। इस पर सब उठ खड़े हुए। ज्ञानस्वरूप को दुकान पर पहुँचते ही सरस्वती का टेलीफोन आया, ‘‘किसी को भेज कर शिव का पता करो। वह कमला से रूठकर घर से भाग गया है। उसके पिता किसी प्रकार की दुर्घटना की आशंका करते हुए उसके पीछे-पीछे गये हैं। पता नहीं कि पिता-पुत्र दोनों मिल सके हैं अथवा नहीं।’’

‘‘अम्मी! मैं अभी स्वयं उसकी दुकान पर जाकर पता करता हूँ। आप उनके घर से पता करिये।’’

सरस्वती ने पहले ही सेवक को रविशंकर के घर पर भेज दिया था। वह बाईसिकल पर गया था और रविशंकर के घर से पता ले आया था कि पिता-पुत्र दोनों में से कोई नहीं पहुँचा। महादेवी तो प्रज्ञा के साथ उसके कमरे में चली गयी थी।

आधे घण्टे के उपरान्त ज्ञानस्वरूप का टेलीफोन आया। टेलीफोन कमला ने उठाया तो ज्ञानस्वरूप ने कहा, ‘‘अम्मी को बुलाओ।’’

सरस्वती के आने पर ज्ञानस्वरूप ने बताया, ‘‘मैं अभी-अभी शिवशंकर की दुकान से होकर आ रहा हूँ। पिता-पुत्र दोनों को वहाँ कॉफी पीते हुए देख आया हूँ। वहाँ उनके साथ बैठ एक प्याला कॉफी का मैं भी पी आया हूँ।’’

सरस्वती के मुख से निकल गया, ‘‘परमात्मा को धन्यवाद है।’’

‘‘अम्मी!’’ ज्ञानस्वरूप ने हँसते हुए कहा, ‘‘मैं प्रज्ञा के पिताजी से पूर्ण घटना सुन आया हूँ। पिताजी का कहना है कि कमला को नर्सिंग-होम में आराम के लिए पौष्टिक खुराक के लिए भरती करवा देना चाहिए।’’

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