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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


शिव अपने स्थान से ऐसे उठा मानो उसे बिच्छू ने डंक मारा हो।

बात कमला ने ही कही। उसने कहा, ‘भैया! रुको। अभी सारी बात तो कही ही नहीं।’’

‘‘तो वह भी कह दो। क्या मैं यहाँ से निकल जाऊँ?’’

‘‘नहीं भैया! आप बड़े भाई के शहबाला बनकर उनके साथ आयेंगे।’

‘‘तो यह आज्ञा है?’’

‘‘मैं यह परमात्मा की बात कह रही हूँ। मैं तो संदेशवाहक मात्र हूँ।’’

‘‘मुझे,’’ रविशंकर ने कहा, ‘‘यह सब-कुछ अटपटा मालूम हो रहा है।’’

‘‘पिताजी! मैं जब वहाँ जाऊँगी तो आपके संशय का निवारण हो जायेगा।’’

‘‘परन्तु मैं कुछ कहना चाहता हूँ।’’ शिव ने कहा।

‘‘सब के बीच में कहेंगे या पृथक् में?’’ कमला ने पूछ लिया।

‘‘मैं सब के सामने कहता हूँ कि मैं तुम्हारा अपहरण करूँगा।’

‘‘अपनी बड़ी भाभी का अर्थात् अपनी माँ का?’’

शिव का मुख पीला पड़ा गया। कमला ने कहा, ‘‘माताजी! चिन्ता न करें। आपके यह पुत्र परमात्मा के विधान का विरोध नहीं कर सकेंगे और परमात्मा का विधान है कि वह भाई की बरात में शहबाला बन कर आयेंगे।’’

शिव ड्राइंगरूम से निकल गया।

रविशंकर ने उठते हुए कहा, ‘‘मैं समझता हूँ कि मुझे लड़के के पीछे जाना चाहिये।’’

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