उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘ओह!’’ सरस्वती ने समझते हुए कहा, ‘‘तो यह तुम्हारे भगवान हैं?’’
‘‘इस घर के। यह इस घर की रक्षा के लिए ही आए हैं।’’
रविशंकर और महादेवी को विदित था कि प्रज्ञा ठीक ग्यारह बजे नर्सिंग-होम से घर आनेवाली है। इस कारण वे भी अपने मकान से यहाँ आ पहुँचे। उनके साथ शिवशंकर भी था।
उमाशंकर तो नर्सिंग-होम में ही पहुँचा था। वह वहाँ से प्रज्ञा के साथ नहीं आया था। वहाँ से उसे किसी रोगी के घर पर उसे देखने जाना था।
रविशंकर ने ज्ञानस्वरूप की गाड़ी कोठी के बाहर खड़ी देखी तो समझ गया कि प्रज्ञा घर पर पहुँच गई है। उसने महादेवी से कहा, ‘‘वह आ गई प्रतीत होती है।’’
‘‘हमें आने में देरी हो गई है।’’
‘‘नहीं; हम ठीक समय पर ही आए हैं।’’
ज्ञानस्वरूप प्रज्ञा को घर पर छोड़ दुकान पर जाने के लिए निकला। उसने अपनी गाड़ी फाटक पर खड़ी कर रखी थी। वह गाड़ी में बैठने जा रहा था कि उसे प्रज्ञा के माता-पिता आते दिखाई दिये।
वह हाथ जोड़ प्रणाम कर उनका स्वास्थ्य समाचार पूछने लगा। रविशंकर ने कहा, ‘‘बरखुरदार! हम प्रज्ञा का समाचार लेने आए हैं।’’
‘‘आइये! वह आ गई है और ड्राइंगरूम में बैठी है। मैं दुकान पर जा रहा हूँ और आपसे आशीर्वाद माँग रहा हूँ।’’
‘‘ओह! तो हम,’’ महादेवी ने कहा, ‘‘बच्चे के इक्कीस दिन का होने पर उसका नामकरण-संस्कार करेंगे और तब बच्चे के और उसके बड़ों के दीर्घ जीवन के लिए परमात्मा से प्रार्थना करेंगे।’’
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