उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो बच्चे का नाम आप रखेंगी?’’
‘‘नहीं रखोगे तो तुम ही। परन्तु यह संस्कार हमारे घर पर होगा।’’
‘‘यह ठीक है।’’
‘‘हमारे घर में कोई शुभ-कार्य किये हुए बहुत दिन हो चुके हैं। मेरा विचार है आठ-दस वर्ष तो हो ही चुके हैं। मैं समझती हूँ कि इस बच्चे के संस्कार से हमारे घर का द्वार भगवान के लिए खुल जायेगा।’’
भगवान का नाम सुन ज्ञानस्वरूप हँस पड़ा और बोला, ‘‘कमला भी यही कह रही है।’’
‘‘क्या कह रही है?’’
ज्ञानस्वरूप हँसता हुआ बिना उत्तर दिये नमस्कार कर बाहर खड़ी मोटर की ओर चल दिया।
महादेवी कुछ न समझती हुई पति तथा छोटे लड़के के साथ भीतर जा पहुँची। कमला ने इनको जाते देखा तो कह दिया, ‘‘माताजी भी आ गई हैं।’’
प्रज्ञा ने बैठे-बैठे ही हाथ जोड प्रणाम कर कहा, ‘‘माताजी! जरा देखिए तो क्या बना है।’’
बच्चा अभी भी कमला की गोदी में सो रहा था।
महादेवी ने प्रज्ञा के समीप बैठे बच्चे को लेने के लिए हाथ बढ़ाये तो कमला ने बच्चे को उनकी गोदी में देते हुए कहा, ‘‘साक्षात् भगवान का रूप ही प्रतीत हुआ है।’’
बच्चा एक बार गोदी बदलने पर रोया और फिर आँख मूँद सो गया। बात कमला ने ही की, ‘‘माताजी! यह कैसा लगता है?’’
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