उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
फरवरी मास में प्रज्ञा के लड़का हुआ। प्रसव एक नर्सिंग-होम में कराया गया और पाँच दिन के बच्चे को लेकर प्रज्ञा घर पर आ गई तो सरस्वती और कमला ने बच्चे और बच्चे की माँ का स्वागत किया।
नर्सिंग-होम में सरस्वती जाती और पतोहू का समाचार लेती रही थी। कमला घर पर ही रही थी। जिस दिन अब्बाजान ने उसके भाई को चुनौती दी थी, उसी दिन से उसने अपने ढंग से तपस्या करनी आरम्भ कर दी थी। वह उस दिन से घर से बाहर नहीं निकली थी।
जब प्रज्ञा बच्चे को लेकर आई तो वह कई दिनों के उपरान्त कोठी के फाटक तक जच्चा-बच्चा के स्वागत के लिए आई।
प्रज्ञा जो उसके विषय में सब-कुछ अम्मी से सुनती रही थी, वह इतनी भी आशा नहीं करती थी। इस कारण मोटर से बच्चे को गोदी में लिए हुए जब वह उतरने लगी तो कमला ने बच्चे को गोदी में लेने के लिए हाथ फैला दिए।
प्रज्ञा को विस्मय तो हुए, परन्तु उसने कुछ कहा नहीं और बच्चे को उसकी गोदी में दे दिया। कमला उसे छाती से लगा भीतर ले गई।
सरस्वती ने ड्राइंगरूम में बैठते हुए कहा, ‘‘आज कमला ने अपनी सौगन्ध तोड़ी है और अपने कमरे से निकल कोठी के फाटक तक गई है।’’
‘‘अम्मी! घर में भगवान जो आए हैं।’’ कमला ने कहा।
‘‘कौन आये हैं?’’ सरस्वती ने न समझते हुए पूछ लिया।
कमला ने सोये हुए शिशु को दिखा दिया, ‘‘देखिए! कैसी मीठी मुस्कान इसके मुख पर छा रही है?’’
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