उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘हाँ, तुमने दीन की जड़ों में डाइनामाइट लगा दिया है। मैंने तो तुम्हारी बीवी की सूरत-शक्ल देखते ही कहा था कि उसे पीट-पीटकर घर से निकाल दो। वह तुमने किया नहीं। अब मैं तुम्हें जेल में डलवा कर उसे भूखे तड़पा-तड़पा कर तुम्हारे घर से भगा दूँगा।’’
‘‘और यह आपका खुदा कहता है?’’
‘‘बिल्कुल!’’
‘‘तो अब्बाजान! मैं लाचार हूँ। खुदा से झगड़ा करना मेरी तौफीक से बाहर है।’’
‘‘तुम अब भी अपने रवैये को तबदील कर सकते हो। देखो, मार्च सोलह-सत्रह तारीख को चुनाव हो रहे हैं और मुझे यकीन है कि हमारी मदद से सरकार मुकम्मल अक्सरीयत में आ जाएगी और तब से पहले अपने घर को इन गन्दगी से साफ कर दो। वरना...।’’
‘‘अब्बाजान! तब तो आपकी बात गौर-तलब है। मैं देखूँगा कि अगर मेरे खुदा ने भी यही राय दी जो आपका खुदा आपको दे रहा है तो फिर मुझे वह राय माननी ही पड़ेगी।’’
‘‘हाँ! और अपने खुद को भी बता देना कि उसके लिए जहन्नुम की पनाह की जगह रह जाएगी। काफ़िरों के खुदा को ही शैतान कहा जाता है।’’
चाय आई तो दोनों पीने लगे। चाय पीते हुए ज्ञानस्वरूप ने अम्मी सालिहा के विषय में पूछ लिया। अब्दुल हमीद ने बताया, ‘‘वह आजकल मेरे साथ होटल में रह रही है।’’
‘‘वह भी हमसे नाराज मालूम होती हैं।’’
‘‘वह तो मुझसे भी ज्यादा नाराज है। उसका कहना है कि तुम्हारी बीवी के दोनों भाईयों ने उसकी लड़की पर जादू कर रखा है और वह किसी को भी जवाब नहीं दे सकती। दोनों ही उसकी लड़की से ताल्लुक कायम करने की कोशिश कर रहे हैं।’’
ज्ञानस्वरूप अनुमान लगा रहा था कि उसके अब्बाजान का केन्द्रीय सरकार और सी.बी.आई. पर कैसा दबाव है जो वह इस किस्म की धमकियाँ दे रहे हैं।
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