उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
इसके उपरान्त चारों अपने-अपने कार्य में लग गए। ज्ञानस्वरूप और प्रज्ञा स्वाध्याय में लग गए थे। सरस्वती और कमला अपने-अपने कमरों में जो विचार करने लगीं कि क्या होनेवाला है। रात के समाचार ने सबको भयभीत कर दिया था और रात-भर जागने पर भी वे किसी स्थिर परिणाम पर नहीं पहुँच सके थे। अब एक घण्टे के इस संगीत ने चित्त को स्थिर और शान्त कर दिया था। कमला ने अपनी एक पुस्तक निकाली और पढ़ने लगी। सरस्वती भी आँखें मूँद अपने ध्यान में मग्न हो गई।
आठ बजे के लगभग उमाशंकर का टेलीफोन आया। उसने बताया, ‘‘मेरे एक परिचित ने मुझे गृहमन्त्री से मिलाया है। उसने मेरी बात सुन सी.बी.आई. के चीफ को कार्यवाही स्थगित करने का आदेश दे दिया है और हमारे विरुद्ध सब कागज अपने पास मँगवा लिए हैं।’’
‘‘गृहमन्त्री ने बताया है कि मुहम्मद यासीन उर्फ ज्ञानस्वरूप के वारंट ग्रेटर कैलाश के थानेदार को तामील के लिए भेजे जा चुके थे। अब उनको वापस मँगवा लिया गया है।’’
उमाशंकर ने यह भी बताया, ‘‘मेरे एक सहपाठी गृह-मन्त्रालय में हैं। यह उनके परिश्रम का फल है। उन्होंने वचन दिया है कि आपके विपरीत आरोप पत्र निकलवाया जायेगा और उस केस में हुक्म कैसे करवाया गया है, इसका पता किया जायेगा।’’
‘‘अब मैं मध्याह्नोपरान्त उसी सहपाठी के साथ सी.बी.आई. के कार्यालय में इसकी फाइल देखने का यत्न करूँगा।’’
‘‘तो दादा! मैं क्या कर सकता हूँ?’’ ज्ञानस्वरूप ने पूछा।
उमा का उत्तर आया, ‘‘कुछ नहीं। अपनी दुकान पर जाकर शान्तचित्त से काम करिये।’’
मध्याह्नोत्तर चाय के समय उमाशंकर ज्ञानस्वरूप की दुकान पर आया और बता गया, ‘‘आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अब्दुल हमीद ने काँग्रेस को काफी धन दिया है। अब्दुल हमीद की सहायता के प्रतिकार में यह कार्यवाही सरकार को करनी पड़ी है।’’
‘‘अब निर्वाचनों तक इस कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया है। इस समय उच्च पदासीन व्यक्तियों की घिनौनी कार्यवाही का बहुत ही अशुभ स्वरूप प्रकट हुआ है।’’
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