उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
प्रातः का अल्पाहार लेने के लिए ज्ञान खाने के कमरे में जा पहुँचा। दोनों अम्मियाँ तथा कमला पहले ही वहाँ आ चुकी थीं और प्रज्ञा तथा ज्ञानस्वरूप की प्रतीक्षा कर रही थीं। ज्ञानस्वरूप दुकान जाने के लिए उत्सुकता प्रकट कर रहा था। इस कारण वह शीघ्रता से खाने की मेज पर जा बैठा।
प्रज्ञा सातवें महीने में थी, इस कारण पीछे धीरे-धीरे आ रही थी।
ज्ञानस्वरूप ने नाश्ता लेना समाप्त किया और मोटर में सवार हो दुकान को चला गया। उसके चले जाने के उपरान्त सालिहा ने प्रज्ञा से कहा, ‘‘तुम्हारा छोटा भाई दिलदार इन्सान मालूम होता है। पचास हजार मित्रों और दूसरे रिश्तेदारों से इकट्ठा कर लिया है और अब बाप से भी, जो उससे बिल्कुल रूठा हुआ था, उसने भारी रकम का वायदा ले लिया है।’’
‘‘बढ़ई का अनुमान था कि बीस हजार फर्नीचर पर लग जायेगा और फिर उसमें बिक्री के लिए माल भी तो लगाना होगा। मैं समझती हूँ कि एक लाख उसे मिले तो उसकी नौका पार लग सकेगी।’’
सरस्वती ने कहा, ‘‘अगर बहिन सालिहा कोशिश करे तो इतना कुछ अब्बाजान से दिला सकती है?’’
‘‘मैं कोशिश तो कर सकती हूँ, मगर वह शर्त लगा देंगे?’’
‘‘क्या शर्त लगा देंगे?’’ कमला ने पूछा।
‘‘वह तुम्हारे खाविन्द को मुसलमान हो जाने को कहेंगे।’’
‘‘पर अम्मी! कौन है मेरा खाविन्द? मैंने तो अभी शादी नहीं की?’’
‘‘करना तो चाहती हो?’’
‘‘हाँ, मगर किससे? इसका मैंने फैसला नहीं किया और अम्मी कह रही हैं कि भाभी के छोटे भाई से शादी करूँ।’’
‘‘हाँ, तब अब्बाजान मदद करेंगे। केवल उसको मुसलमान हो जाने को कहेंगे।’’
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