उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो वे परस्पर लड़ पड़ेंगे?’’
‘‘मुझे इसमें कोई कारण प्रतीत नहीं होता। दोनों जानते हैं कि कमला एक बुद्धिशील प्राणी है। एक जीवात्मा है और उस जीवात्मा की सहायता के लिए उसमें उपस्थित परमात्मा का अनुभव उसे है।’’
‘‘इसमें क्या होता है?’’ सालिहा का कहना था, ‘‘जब ख्वाहिशात का जोर होता है तो रूह खुदा को ताक पर रख कर ख्वाहिश पूरी करने भाग खड़ी होती है।’’
‘‘अम्मी! दोनों भाइयों में यह कशमकश चल रही है। दोनों के माता-पिता इनकी दौड़ को दिलचस्पी से देख रहे हैं। वे किसी का पक्ष नहीं लेना चाहते। मगर वे किसी एक को दूसरे से धोखा-धड़ी भी करने नहीं देंगे।
‘‘इस कारण मैं समझती हूँ कि यह मसला कमला को तय करने के लिए छोड़ दिया जाये।’’
‘‘और कमला फैसला क्यों नहीं करती?’’
‘‘एक दिन दादा उमाशंकर ने मेरे सामने ही कमला से कहा था कि ठीक यही होगा कि तुम अपने मन में निश्चय कर लो।’’
‘‘इस पर कमला ने कहा था, पन्द्रह जनवरी १९७२ को मेरा जन्मदिन है और तब मैं पूरे इक्कीस वर्ष की होने वाली हूँ। उससे पहले तो निश्चय कर ही लूँगी। तब तक आप दोनों भाइयों से अपनी प्रशंसा सुन-सुन चित्त प्रसन्न करने का अधिकार मैं सुरक्षित रखना चाहती हूँ।’’
‘‘इस पर उमाशंकर ने कहा था कि उसे अपनी नहीं, शिव की मानसिक अवस्था की चिन्ता है।’’
‘‘दादा का यह कहना था कि शिव ने बी.एस-सी. बहुत अच्छे अंक लेकर पास की है और वह एम.एस-सी. में प्रवेश पाने के लिए उत्सुक प्रतीत नहीं होता। यदि तुम अपना निश्चय बता दोगी तो वह स्थिर चित्त होकर पढ़ाई में लग जायेगा अथवा कुछ काम-धन्धा करने लगेगा। वह अस्थिर चित्त अपने भविष्य के विषय में निर्णय नहीं कर सकता।’’
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