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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

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कमला की समस्या से अधिक विकट समस्या रविशंकर की थी। अब रविशंकर ने विष्णुसहाय से मिलना अधिक कर दिया था। विष्णुसहाय करोलबाग वैस्टर्न ऐस्सटेन्शन में रहता था। यह उसका अपना मकान था। उसका दूसरा लड़का रामसहाय विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त होने से विश्वविद्यालय कक्ष में एक क्वार्टर में जाकर रहने लगा था। वह अर्थशास्त्र का पी-एच.डी. था और अपने विभाग का प्रमुख बनने का यत्न करना चाहता था। इस अर्थ विश्वविद्यालय के अधिकारियों से सम्पर्क बनाने के लिए विश्वविद्यालय क्षेत्र में रहना आवश्यक था। इस पर भी वह प्रातः पिता से मिलने आता रहता था। इससे उसका सम्पर्क रविशंकर से भी था।

जिस दिन रविशंकर को विष्णुसहाय से मिलना होता था, वह दो बजे मध्याह्न ही घर से निकल पड़ता था और दो स्थानों पर बस बदलता हुआ चार बजे के लगभग विष्णुसहाय के मकान पर जा पहुँचता था। और फिर दो घंटे विष्णुसहाय की संगत में रह रात के आठ बजे घर आ पहुँचा करता था।

महादेवी इससे चिन्ता अनुभव करने लगी थी। यह चिन्ता पति के घर में आने में देरी हो जाने के कारण हुआ करती थी। इस पर भी एक बात का उसको संतोष होता था कि जिस दिन रविशंकर अपने मित्र से मिलकर आता था, वह प्रसन्न रहता था।

शिव प्रज्ञा के घर पर कमला से मिलने अब दूसरे-तीसरे दिन जाने लगा। यह बात ज्ञानस्वरूप की अम्मियों को पता चल चुकी थी कि प्रज्ञा का यह भाई कमला से विवाह की इच्छा करता हुआ आता है। इस बात की सूचना कमला के मास्टर ने ही कमला की अम्मियों को दी थी। पहले तो दोनों औरतों को अटपटा लगा, परन्तु जब उन्होंने प्रज्ञा से यह बात की तो प्रज्ञा ने दोनों का समाधान कर दिया।

प्रज्ञा ने कहा, ‘‘दोनों भाई यह जानते हैं कि वे इस विषय में प्रतिद्वन्द्वी हैं।’’

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