उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘मैं आपसे जानना चाहती हूँ कि आप मुझे क्या राय देती हैं?’’
‘‘मेरी इस विषय में कुछ भी राय नहीं। दोनों भाई मुझे प्रिय हैं। तुम किसी से भी विवाह करो, मेरे तुम्हारे सम्बन्ध में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। तुम मेरी भावज तो रहोगी ही।’’
कमला चुपचाप अपने मन में दोनों भाइयों के पक्ष-विपक्ष में विचार करने लगी। अब प्रज्ञा ने कहा, ‘‘मैं समझती हूँ कि तुम्हें इस विषय में और आगे पग उठाने से पूर्व कुछ दिन मौन रहकर अपने मन की टोह लेनी चाहिए और दोनों को तुम्हें प्राप्त करने के लिए यत्न करने देना चाहिए।
‘‘अगर तुम्हें कोई बात समझ न आए तो मुझसे आकर पता करना। तब मैं यत्न करूँगी कि तुम्हारे विचारों को दिशा देने में तुम्हारी सहायता कर दूँ।’’
कमला प्रज्ञा से बात समाप्त करते हुए उठ खड़ी हुई और कहने लगी, ‘‘आप ठीक कह रही हैं। इस छोटे साहब के प्रस्ताव से मेरे मन में आह्लाद तो उत्पन्न हुआ है। आह्लाद होने का कारण मैं जान नहीं सकी। मैंने जबसे इन छोटे साहब से यह सब सुना है, तब से ही इस खुशी का कारण जानने का यत्न कर रही हूँ।’’
‘‘ठीक है, यत्न करो। और मैं यह राय दूँगी कि अन्तिम निर्णय के पूर्व मुझे बता देना कि तुमने क्या निर्णय लिया है जिससे तुम्हारे जीवन की गाड़ी की पटरी बदलने में सहायक हो सकूँ।’’
‘‘तो भाभी! तुम दोनों हालतों में मेरी सहायता करेगी?’’
‘‘मेरे लिए, मैंने बताया है कि कुछ अन्तर नहीं पड़ेगा। तुम मेरी भावज तो बनोगी ही।’’
कमला इस समस्या पर विचार करने अपने कमरे में चली गई।
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