उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘तो फिर क्या हुआ? अपने बैंक और कैश पर अपनी कब्जा रखो?’’
‘‘ठीक है। यह मैं रखता हूँ।’’ यासीन ने कह दिया। फिर उसने बात बदल कर कहा, ‘‘प्रज्ञा का भाई सब घरवालों से ज्यादा खूबसूरत और तन्दुरस्त दिखाई देता है।’’
‘‘तो फिर क्या किया जाए? मगर उसकी बहन ने तुमसे शादी की है। यह उसने तुम्हें पसन्द कर की है।’’
‘‘वह मेरे जिस्मानी औसाफ की वजह से नहीं, बल्कि मेरे इल्मी औसाफ की वजह से है।’’
‘‘वह क्या पढ़ी है?’’
‘‘मुझसे ज्यादा पढ़ी है। वह डबल एम.ए. है।’’
‘‘मैं इसका क्या करूँ? तुम्हारे पाँच-छः बच्चे हुए तो मैं उसकी इज्जत करूँगा।’’
‘‘पर अब्बाजान! आप बच्चों का अचार डालेंगे? क्या आपके अपने कम हैं?’’
‘‘जितने अधिक हों उतनी मुसलमानों की तादाद बढ़ेगी।’’
‘‘इससे आपको क्या मिलेगा?’’
‘‘यह तुम अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे लोग नहीं समझ सकते। एक जबरदस्त दौड़ हमारे और ईसाइयों के भीतर लगी हुई। दुनिया में सबसे ज्यादा बौद्ध थे। मगर अब उनकी तवज्जो मजहब की तरफ नहीं रही। कम्युनिज्म ने उनके मजहबी जोश को ठण्डा कर रखा है। हाँ, ईसाई दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। उनके मुकाबिले में हम ही कुछ ताकतवर हैं। हमारे आलमों का कहना है कि अगली सदी के शुरु में मुसलमानों की तादाद दुनिया की आबादी की आधी से ज्यादा हो जायेगी। तब हम सब मुसलमान मिल कर दुनिया पर हुकूमत करेंगे।’’
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