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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596
आईएसबीएन :9781613011027

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


कमला ने कहा, ‘‘अम्मी! उसने वही वजह बता दी जिस वजह से तुम मुझे मिलने आयी हुई हो। तुम मेरी अम्मी हो और वह भाभीजान का भाई है।’’

‘‘मगर मैं तो एक खास मुद्दा को हासिल करने आयी हूँ।’’

‘‘क्या?’’

‘‘कभी किसी वक्त तन्हाई में बताऊँगी।’’

‘‘वही तो नहीं जो अभी पहली रात मेरे साथ पलंग पर लेटकर बताने लगी थीं?’’

‘‘वह तो तुम्हारा इम्तिहान ले रही थी कि तुम में कितनी अक्ल आयी है।’’

‘‘और फिर उस इम्तिहान का क्या नतीजा है?’’

इस समय ज्ञानस्वरूप, प्रज्ञा और उनके साथ ही शिव ड्राइंगरूम में दाखिल होते दिखाई दिए।

इस कारण अम्मी की अपनी लड़की से बातचीत रुक गई। प्रज्ञा ने भीतर आते ही कमला की अम्मियों से अपने छोटे भाई का परिचय कराना आरम्भ कर दिया।

साढ़े छः बजे का वक्त था। इस कारण इनके आते ही सेविका इनके लिए चाय ले आयी।

प्रज्ञा ने बैठते हुए कहा, ‘‘शिवशंकर ने बी.ए. की परीक्षा दी है। परीक्षाफल अभी नहीं निकला और आजकल यह बिल्कुल खाली होने से सम्बन्धियों और दोस्तों के घरों के चक्कर काटा करता है। इस सिलसिले में यह एक दिन पहले भी आया था। उस दिन अब्बाजान अपने वकील से साथ यहाँ आये हुए थे और वे दोनों इनसे बातचीत कर रहे थे। आज यह फिर यहाँ आया है।’’

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