उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
|
391 पाठक हैं |
खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
सालिहा का कहना था, ‘‘मैं इस सब में वजह तुम्हारी बदल रही जबान समझती हूँ। तुम इस विचित्र भाषा के इल्फाज़ के जंगल में भटक रही हो।’’
‘‘मुझे भी बहू ने एक शब्द बताया है और कहा है कि इसके मायने पर गौर किया करूँ और मैं भी अपने ऐतकाद से भटकने लगी हूँ।’’
कमला मुस्कराई। वह अम्मी की बात सुन रही थी कि किसी ने बरामदे में घण्टी का बटन दबाया। भीतर घण्टी बजी और कमला उठ बाहर देखने चली गयी।
घण्टी बजाने वाला शिवशंकर था। जब कमला आयी तो शिव ने हाथ जोड़ नमस्ते कर कह दिया, ‘‘दीदी से मिलने आया हूँ।’’
‘‘वह तो घर पर नहीं है।’’
‘‘कहाँ गयी हैं?’’
‘‘भाई साहब के साथ कहीं गयी हैं। ख्याल है कि कोई पिक्चर देखने गयीं हैं।’’
‘‘कितने बजे के शो में गई हैं?’’
‘‘घर से वह सवा दो बजे गयी थीं।’’
‘‘मैं तो आपसे मिलने आया हूँ।’’
‘‘हाँ, बताइये। क्या काम है?’’
‘‘कुछ दिन हुए जब आप माताजी से मिलने हमारे घर आयी थीं तो मैंने आपसे कुछ निवेदन किया था। उसका उत्तर आपने यह दिया था कि आप दादा उमाशंकर जी से बुक की जा चुकी हैं।’’
|